Thursday, June 25, 2015

लत्तर


लत्तर

--- कुंदन अमिताभ ---

सौसे बदन पर लतरैलॊ छै
लतरिया ऐन्हॊ  भटकलॊ मन
बदन केरॊ कोय जोर नै
कान छै पर सूनै छै
खाली बाहर के - अन्दर के नै
आँख छै पर देखै छै
खाली बाहर के - अन्दर के नै
मती छै पर परखै छै
खाली बाहर के - अन्दर के नै
नाक छै पर सूँघै छै
खाली बाहर के - अन्दर के नै

जीवन एगॊ जंग छेकै
डॉक्टर बीमारी सॆं लड़ै छै
शिक्षक अज्ञान सॆं लड़ै छै
वकील अन्याय सॆं लड़ै छै
एक मानव रूपॊ मॆं इंसान मन सॆं लड़ै छै
भटकलॊ मन के लत्तर एतना बरियॊ 
कि बदन पस्त होय जाय छै
मन  शरीर कॆ भटकाबै छै बाहर
जबकि दुश्मन छै सँखरैलॊ  अंदर
बाहर केरॊ  दुश्मन खोजना आसान छै
अंदर छुपलॊ  दुश्मन खोजना छै मुश्किल

असल जंग  आपनॊ अंदर सॆं छै
अज्ञानता मन मॆं निराशा लानै छै
जीवन जंग लड़ै के अनिच्छा निराशा  लानै छै
अर्जून निराश छेलै - लड़ै लॆ नै चाहै छेलै
ओकरॊ हाथ सॆं धनुष गिरी पड़लै
औंगरी काँपै लागलै 
घबराहट सॆं सौसे शरीर घामी गेलै
कृष्ण नॆं जागरूक रहै  लॆ  कहलकै अर्जुन कॆ
सजग रही के  जंग करै के प्रेरणा देलकै
सजग रही के जंग करै के  निश्चय करला सॆं
बदन सॆं  भटकलॊ मनॊ के लत्तर हटॆ पारॆ

Angika Poetry : Lattar
Poetry from Angika Poetry Book : Sarang
Poet : Kundan Amitabh
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