गल्ला जब्भॊ
--- कुंदन अमिताभ ---
उजास होला के बाद भी कहीं सुतले नै रही जाहॊ
फैरछॊ के बाद भी कहीं अन्हारे मॆं रहै के अहसास नै हुऔं
इ लेली तॆ समय पर भोरे - भोर जगाय दै छियौं बाँग दै कॆ
लेकिन इ तॆ तय छै कि कोनॊ कुटुम आबी जैथौं तॆ
सभसॆं पहले हमरे गल्लॊ जब्भॊ करै लॆ सोचभॊ
तोंय हमरा माय - बाबू सथें भी तॆ यहॆ करलॊ
हमरा मामा - बाबा सथें भी तॆ यहॆ करलॊ
तोंय आपनॊ खस्सी, बकरी सथें भी तॆ यहॆ करलॊ
तोंय आपनॊ बरद, गाय सथें भी तॆ यहॆ करलॊ
या तॆं माँस लेली काटी लेल्हॆ नै तॆ बेची देल्हॊ बूचड़खाना मॆं
ठीक छै कि बाँग लेली दोसरॊ मुर्गा मिली जैथौं
ठीक छै कि अंडा लेली दोसरॊ मुर्गी मिली जैथौं
ठीक छै कि दूध लेली दोसरॊ गाय मिली जैथौं
ठीक छै कि जोतै लेली दोसरॊ बरद मिली जैथौं
ठीक छै कि माँस लेली दोसरॊ खस्सी मिली जैथौं
इ भी ठीक छै कि तोंही पाललॆ - पोसलॆ हमरा सब कॆ
इ भी ठीक छै कि तोंही पाललॆ - पोसलॆ मुर्गी सब कॆ
इ भी ठीक छै कि तोंही पाललॆ - पोसलॆ गाय सब कॆ
इ भी ठीक छै कि तोंही पाललॆ - पोसलॆ बरद सब कॆ
इ भी ठीक छै कि तोंही पाललॆ - पोसलॆ खस्सी सब कॆ
लेकिन इ जे जंगल काटी रहलॊ छहॊ
लेकिन इ जे पहाड़ काटी रहलॊ छहॊ
लेकिन इ जे नद्दी नाशी रहलॊ छहॊ
हेकरा तॆ तोंय नै पाललॆ - पोसलॆ नै तोंय बनैल्हॆ
ना ही एक बार नाशला के बाद इ फिर आबै वाला छै
ऐनहॊ धातॊ सॆं तोंय केकरॊ गल्लॊ जब्भॆ करी रहलॊ छहॊ ?
Angika Poetry : Galla Jabhhow
Poetry from Angika Poetry Book : Sarang
Poet : Kundan Amitabh
Please visit angika.com for more Angika language Poetry
उजास होला के बाद भी कहीं सुतले नै रही जाहॊ
फैरछॊ के बाद भी कहीं अन्हारे मॆं रहै के अहसास नै हुऔं
इ लेली तॆ समय पर भोरे - भोर जगाय दै छियौं बाँग दै कॆ
लेकिन इ तॆ तय छै कि कोनॊ कुटुम आबी जैथौं तॆ
सभसॆं पहले हमरे गल्लॊ जब्भॊ करै लॆ सोचभॊ
तोंय हमरा माय - बाबू सथें भी तॆ यहॆ करलॊ
हमरा मामा - बाबा सथें भी तॆ यहॆ करलॊ
तोंय आपनॊ खस्सी, बकरी सथें भी तॆ यहॆ करलॊ
तोंय आपनॊ बरद, गाय सथें भी तॆ यहॆ करलॊ
या तॆं माँस लेली काटी लेल्हॆ नै तॆ बेची देल्हॊ बूचड़खाना मॆं
ठीक छै कि बाँग लेली दोसरॊ मुर्गा मिली जैथौं
ठीक छै कि अंडा लेली दोसरॊ मुर्गी मिली जैथौं
ठीक छै कि दूध लेली दोसरॊ गाय मिली जैथौं
ठीक छै कि जोतै लेली दोसरॊ बरद मिली जैथौं
ठीक छै कि माँस लेली दोसरॊ खस्सी मिली जैथौं
इ भी ठीक छै कि तोंही पाललॆ - पोसलॆ हमरा सब कॆ
इ भी ठीक छै कि तोंही पाललॆ - पोसलॆ मुर्गी सब कॆ
इ भी ठीक छै कि तोंही पाललॆ - पोसलॆ गाय सब कॆ
इ भी ठीक छै कि तोंही पाललॆ - पोसलॆ बरद सब कॆ
इ भी ठीक छै कि तोंही पाललॆ - पोसलॆ खस्सी सब कॆ
लेकिन इ जे जंगल काटी रहलॊ छहॊ
लेकिन इ जे पहाड़ काटी रहलॊ छहॊ
लेकिन इ जे नद्दी नाशी रहलॊ छहॊ
हेकरा तॆ तोंय नै पाललॆ - पोसलॆ नै तोंय बनैल्हॆ
ना ही एक बार नाशला के बाद इ फिर आबै वाला छै
ऐनहॊ धातॊ सॆं तोंय केकरॊ गल्लॊ जब्भॆ करी रहलॊ छहॊ ?
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