Thursday, September 25, 2014

सप्तश्लोकी दुर्गा

सप्तश्लोकी दुर्गा
—– कुंदन अमिताभ —–
जबॆ भगवान शंकर आग्रह करलकै कि
हे देवी दुर्गा! तोंय भक्तसुलभ,सर्वकार्यविधायिनी,
बताबॊ कलयुग मॆ कामनासिद्धि  के उपाय वृहत आरू वर्णनीय.
तॆ देवी बोललै कि
हे देव ! जरूर कलयुग मॆ (कार्य) कामनासिद्धि  के श्रेष्ठ उपाय बतलैबै,
आपनॆ के स्नेहवश इ श्रेष्ठ साधन, ‘अम्बा स्तुति’ कॆ जगजाहिर  करबै.
सचमुच देवी भगवती ऐन्हॆ छै-
भगवती महामाया देवी ज्ञानियॊ के मन कॆ भी
बलपूर्वक खींचीकॆ मोह मॆ डाली दॆ छै.
माय दुर्गा ! याद करला पर तोंय सबके भय हरी लै छहॊ.
स्वस्थ मनॊ सॆं चिंतन करला पर कल्याणमयी बुद्धि प्रद्दतै छै.
दुःख, दरिद्रता आरू भय कॆ हरै वाली देवी तोरॊ सिवा के छै
जेकरॊ चित्त सबके उपकार करै लेली सदैव त्तपर रहै छै.
हे सर्वमंगल मंगलमयी, कल्याणदायिनी, शिवा, शरणागतवत्सला ,
त्रयम्बक गौरी, नारायणी ! तोरा हमरॊ नतमस्तक नमस्ते.

हे शरणागत दीनजनॊ, पीङितॊ के रक्षा मॆं लिप्त रहै वाली,
सर्वपीङा हरै वाली देवी नारायणी! तोरा हमरॊ नतमस्तक नमस्ते.
सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी, सर्वशक्तिसम्पन्न, दिव्यरूपा,
सर्वभयहारिणि देवी दुर्गा! तोरा हमरॊ नतमस्तक नमस्ते.
प्रसन्नमुद्रा सर्वरोगविनाशिनी,
रूष्टमुद्रा मनोवाञ्छित-सर्वकामनाविनाशिनी,
शरणागत कॆ विपत्तिमुक्त राखै वाली, सम्पन्न बनाबै वाली
भवतारिणि माय दुर्गा! तोरा हमरॊ नतमस्तक नमस्ते.
हे सर्वेश्वरी! सर्वबाधाहारिणि, माय दुर्गा!
ऐन्हैकरीकॆ तोंय तीनॊ लोकॊ के समस्त बाधा कॆ शान्त करॊ
आरू हमरॊ शत्रुऒ के विनाश करतॆं रहॊ.


Angika Poetry : Saptshloki Durga
Poetry from Angika Poetry Book Collection : Sarang
Poet : Kundan Amitabh
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