धरती केरॊ झपकी
--- कुंदन अमिताभ ---
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय बिलाय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय हेराय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय गराय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय सेराय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय छलाय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय गलाय जाहॊ
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ.
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ वजूद खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ लहू खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ जुबान खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ धरान खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ सूरूर खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ हूर खतम हुऎ
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ.
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ
धरती केरॊ झपकी सॆं
भारी-भरकम डायनासोर भी लुप्त होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं
उच्चॊ-उच्चॊ पहाड़ भी विलुप्त होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं
सुसुप्त ज्वालामुखी भी जाग्रत होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ
धरती केरॊ झपकी सॆं
शांत नद्दी केरॊ जल भी अशिष्ट होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं
विशेष ज्ञान भी अश्लिष्ट होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं
अप्रतिम सौंदर्य भी अविस्पष्ट होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ
धरती कॆ नोचै के जिद नै करॊ
धरती कॆ बेचै के जिद नै करॊ
धरती कॆ सैतै के जिद नै करॊ
धरती कॆ न्योतै के जिद नै करॊ
धरती कॆ भेदै के जिद नै करॊ
धरती कॆ औलाबे के जिद नै करॊ
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ
Angika Poetry : Dharti Ke Jhapki
Poetry from Angika Poetry Book Collection : Sarang
Poet : Kundan Amitabh
Please visit angika.com for more Angika language Poetry
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय बिलाय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय हेराय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय गराय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय सेराय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय छलाय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय गलाय जाहॊ
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ.
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ वजूद खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ लहू खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ जुबान खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ धरान खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ सूरूर खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ हूर खतम हुऎ
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ.
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ
धरती केरॊ झपकी सॆं
भारी-भरकम डायनासोर भी लुप्त होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं
उच्चॊ-उच्चॊ पहाड़ भी विलुप्त होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं
सुसुप्त ज्वालामुखी भी जाग्रत होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ
धरती केरॊ झपकी सॆं
शांत नद्दी केरॊ जल भी अशिष्ट होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं
विशेष ज्ञान भी अश्लिष्ट होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं
अप्रतिम सौंदर्य भी अविस्पष्ट होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ
धरती कॆ नोचै के जिद नै करॊ
धरती कॆ बेचै के जिद नै करॊ
धरती कॆ सैतै के जिद नै करॊ
धरती कॆ न्योतै के जिद नै करॊ
धरती कॆ भेदै के जिद नै करॊ
धरती कॆ औलाबे के जिद नै करॊ
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ
Angika Poetry : Dharti Ke Jhapki
Poetry from Angika Poetry Book Collection : Sarang
Poet : Kundan Amitabh
Please visit angika.com for more Angika language Poetry
No comments:
Post a Comment