Thursday, June 11, 2015

डर

डर

--- कुंदन अमिताभ ---

दोसरा कॆ डराबै  वाला इंसान सबसॆं जादे डरपोक होय छै
जे डराबै छै - ओकरा  आस्तॆं -आस्तॆं डराबै मॆं मजा आबै लागै छै
डरैतॆं - डरैतॆं  वू  अपराधी बनी जाय छै - ओकरा पता भी नै चलै छै
जे डरै छै - वू आस्तॆं -आस्तॆं डराबै वाला सॆं परहेज करॆ लागै छै
डरतॆं - डरतॆं  वू अपराधी  केरॊ अपराध के शिकार बनॆ पारॆ छै 
जेकरा मॆं  अन्दरूनी साहस के कमी छै - ओहीं डराबै छै आपनॊ साहस कॆ नापै लॆ
जेकरा आपनॊ  अन्दरूनी साहस  आरू  ताकत के पहचान नै छै - ओहे डरै छै

डर अतीत केरॊ  अनुभव केरॊ प्रतिविम्ब हुऎ सकॆ छै
जे अखनी अवास्तविक रही कॆं भी भविष्य मॆं घटित होय के आभास दै छै
डरी जाना कखनू - कखनू फायदेमंद भी हुऎ सकै छै
केखरौ मरै केरॊ डर  ओकरॊ जीवन केरॊ रक्षा करै  सकै छै
गलती  करै केरॊ डर सही रास्ता पर चलाबै मॆं मदद करै सकै छै
बीमार होय केरॊ डर साफ-सफाई कॆ प्रोत्साहन पैदा करै सकै छै
दुःख केरॊ डर नेकी के रास्ता पर चलै के ललक पैदा करै  सकै छै


संसार  कॆ ठीक सॆं चलतॆं रहॆ के खातिर जरूरी छै भगवान केरॊ डर
भगवान केरॊ  डर केरॊ नॊन ऐन्हॊ मात्रा  भी मार्गदर्शक केरॊ काम करै सकै छै 
डर  रूपी ईश्वरीय प्रेम - जे भटकी गेलॊ छै आरू जे भटकै वाला छै सभ लॆ
बूतरू के मनॊ के डर ओकरा चलै घड़ी  चौकन्ना  सावधान रखै छै
विद्यार्थी केरॊ  फेल होय के डर ओकरा  अथक परिश्रम करै मॆं मदद करै छै
जीवन मॆं डर केरॊ मात्रा तनियो टा नै होना अहंकारी  बनाबै सकै छै - कंस, रावण
डर कॆ समझी कॆ स्वीकारी लेना डर सॆं मुक्त होय के द्वार फिट्टॊ करी देना हुऎ सकै छै


जबॆ जबॆ कोनॊ सीमाना लाँघलॊ जाय छै डर के जनम होय छै
डर जे नफरत घिन पैदा करै छै - खुद सॆं भी, दोसरौ सॆं भी 
तोॆय डर सॆं बचै के हर तरह के चेष्टा करै छहॊ - डर छै कि कमै के नाम नै लै छै
डर सॆं बचै के हर तरह के चेष्टा  तोरा आरू कमजोर बनाबै छौं
ऐतना कमजोर कि तोंय टूटॆ सकॆ आरू अपराध करना ही तोरॊ प्रवृति बनी जाय
ऐकरा सॆं बचॊ - गलती करनॆ छहॊ तॆ स्वीकारॊ - तोरॊ सब डर फुर्र होथौं
गलती कोय भी  करॆ सकै छै - स्वीकारॊ आरू आगू बढ़ॊ - डरमुक्त जिनगी लॆ


डर  प्रेम केरॊ ही दोसरॊ रूप छेकै कुछ हद तलक
हर वू बात जे डर सॆं करैलॊ जाबॆ सकै छै प्रेम सॆं भी करैलॊ जाबॆ पारॆ
ऐगॊ बूतरू माय सॆं चिपकी जाय छै - या तॆं डर सॆं या प्रेम सॆं
ऐगॊ अपराधी अपराध करना छोड़ी दै छै - या तॆं डर सॆं या प्रेम सॆं
ऐगॊ जानवर  इंसान के बस मॆं होय  जाय छै - या तॆं डर सॆं या प्रेम सॆं
पर प्रेम जहाँ मुरझैलॊ जीवन मॆं  भी प्राण फूँकॆ सकॆ छै 
डर वहीं हलहलैलॊ जीवन कॆ भी हर पल मरघट पहुँचाबै मॆं भिड़लॊ रहै छै.

Angika Poetry : Dar
Poetry from Angika Poetry Book Collection : Sarang
Poet : Kundan Amitabh
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