Monday, June 29, 2015

झरिया मॆं ओलती


 झरिया मॆं ओलती

--- कुंदन अमिताभ ---

साँस आपनॊ सामान्य वेग सॆं
चली रहलॊ छै निश्चित दिशा मॆं
कखनू शरीर केरॊ भीतर
कखनू शरीर सॆं बाहर

इच्छा आपनॊ असामान्य गति सॆं
बढ़ी रहलॊ छै अनिश्चत दिशा मॆं
एगॊ बेढभ काया ऐन्हॊ असामान्य रूपॊ मॆं
भविष्य केरॊ सुखद चेहरा मनॊ मॆं बनैतॆं

सामान्य आरू  असामान्य  टकराबै छै
बादल ऐन्हॊ करकराबै छै
पड़ै लागै छै झरिया
चूऎ लागै छै ओलती  दुक्खॊ के

जेना - जेना  मनॊ  मॆं इच्छा बढ़ै छै
दुःख आरू बढ़लॊ जाय छै
झरिया के बाद केरॊ
हरियैलॊ घास जेकाँ

 जोंय तोंय  इच्छा कॆ वश मॆं
करै पारौ तॆ  दुःख झरी जाय छै
फूलॊ के उपर पड़ी रहलॊ
झरिया केरॊ पानी ऐन्हॊ अपने आप


Angika Poetry : Jharia Mein Oltee
Poetry from Angika Poetry Book : Sarang
Poet : Kundan Amitabh
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