Thursday, July 2, 2015

तड़पन

--- कुंदन अमिताभ ---

कोय डिबिया नेसी क॑
तैयारी करै छै
रात सं॑ टकराय क॑
अन्हार केरऽ सीना चीरै ल॑

त॑ कोय  कूढ़ी - कूढ़ी क॑ 
बाट जोहतं॑ रहै छै 
कि कोय ऐतै  इंजोरा करै ल॑
अन्हार क॑ भगाबै ल॑

कोय  तरसतं॑  रहै छै 
निरंतर बदलाव लेली
कारोबार ,घर, साथी तक बदलै ल॑
चाहै छै सब जड़ता तोड़ै ल॑

त॑ कोय  डरै  घबराबै  छै
ऐन्हऽ  बदलावऽ सं॑
जैन्हऽ  छै वैन्हे मं॑ खुश छै
वहीं सुरक्षित महसूस करै छै

कोय  ई बदलाव  होथैं 
महसूस करै छै
लेकिन  डरै छै 
बदलाव  क॑ स्वीकारै मं॑

त॑ कोय  ई बदलाव  दन्न॑
ध्यान भी नै दै छै
कहतं॑ रहै छै 
बदलाव  ऐन्हऽ त॑ ऐसनऽ कुछ नै

कुछ  ऐन्हऽ जरूर छै
जेकरा एहसास छै कि
सब कुछ बदली रहलऽ छै  पर
साथें कुछ अपरिवर्तनशील भी छै

बदलाव  लेली तड़पतं॑ हुअ॑ भी
परिवर्तन बीच अपरिवर्तनशील
क॑  जे पहचानै छै -वास्तव मं॑
ओह॑ मुक्त रहै छै  तड़पन सं॑ ।

Angika Poetry : Tarpan
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Wednesday, July 1, 2015

बूतरू केरॊ मॊन


 बूतरू केरॊ मॊन  

--- कुंदन अमिताभ ---

बूतरू केरॊ मॊन
सहज होय छै
पानी ऐन्हॊ निच्छल
पानी ऐन्हॊ पारदर्शी

ओकरा जोन ज्ञानॊ 
के रंग सॆं भरलॊ जाय छै
वैन्हॆ रंग प्रतिविम्बित होय छै
ओकरॊ व्यवहार सॆं

ओकरा जोंय भय 
के रंग सॆं भरलॊ जाय छै
भय झलकतै
ओकरॊ व्यवहार सॆं

ओकरा जोंय गलत विचारॊ 
के रंग सॆं भरलॊ जाय छै
गलत विचार झलकतै
ओकरॊ व्यवहार सॆं

ओकरा जोंय अच्छा आदर्शॊ 
के रंग सॆं भरलॊ जाय छै
अच्छा आदर्श झलकतै
ओकरॊ व्यवहार सॆं

ओकरा जोंय महान गुण 
के रंग सॆं भरलॊ जाय छै
महान गुण झलकतै
ओकरॊ व्यवहार सॆं

ओकरा मॆं भरलॊ गेलॊ भल्लॊ रंग 
जीवन केरॊ गरमी पाबी पक्का होय छै
आरू एगॊ बूतरू आदर्श आरू जिम्मेदार 
नागरिक बनै वास्तॆ बड़ॊ होलॊ जाय छै

Angika Poetry : Bootroo Kerow Mon
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सरंग सॆं उच्चॊ


 सरंग सॆं उच्चॊ  

--- कुंदन अमिताभ ---

कोय ठिक्के कहनॆ छै - 
धरती सॆं  भी भारी होय छै माय
धरती तॆं  गुस्साय भी जाय छै
पर  हर  हाल मॆं संतान के भल्लॊ 
सोचै छै - माय

कोय ठिक्के कहनॆ छै - 
सरंग सॆं  भी उँच्चॊ होय छै - बाबू
बाबू नै रहला पर लागै छै सरंग उठी गेलै
मुसीबत वक्तीं भी  हर हाल मॆं छत्रछाया  
बनैलॆं राखै छै - बाबू

कोय ठिक्के कहनॆ छै - 
हवा सॆं भी चपल होय छै मॊन
हवा  चलै के दिशा भी निश्चित होय छै
पर पल भर मॆं कोनॊ दिशा मॆं 
दौड़ै पारै छै - मॊन

कोय ठिक्के कहनॆ छै - 
धरती पर उगलॊ घास सॆं जादा होय छै हमरॊ चिन्ता
धरती पर उगलॊ घास छै तॆ अनगिनत  - पर सीमित छै
पर  अनगिनत आरू  असीमित छै
हमरॊ मनॊ के चिन्ता

कोय ठिक्के कहनॆ छै - 
माय - बाबू के सेवा  केरॊ धर्म अपनाय कॆ
मन कॆ स्थिर करी कॆ चिंता भगाय कॆ
सहज ढंगॊ सॆं जीलॊ 
जाबै पारै छै - जिनगी

Angika Poetry : Sarang Sein Uchchow
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Tuesday, June 30, 2015

गरदौअा झरिया


 गरदौअा झरिया 

--- कुंदन अमिताभ ---

गरदौआ झरिया पड़ी - पड़ी कॆ
फोका बनी  टघरी टघरी कॆ
नद्दी दन्नॆं बढ़ी रहलॊ छै
जौरें आपनॊ  बूँदो के साथ

गरदौआ झरिया पड़ी - पड़ी कॆ
घोघी केरॊ संगी बनी कॆ
खोरैय खोरैय टप्पी रहलॊ छै
जौरें आपनॊ  बूँदो के साथ

गरदौआ झरिया पड़ी - पड़ी कॆ
सगरे बिथड़लॊ गंदगी कॆ
बहैनै लेनॆ जाय रहलॊ छै
जौरें आपनॊ   बूँदो के साथ

गरदौआ झरिया पड़ी - पड़ी कॆ
बयार सथें नरमी घोरी कॆ
घाम  ओरैनॆं जाय रहलॊ छै
जौरें  आपनॊ  बूँदो के साथ

गरदौआ झरिया पड़ी - पड़ी कॆ
जोंकटी सीनी के लानी करी कॆ
ऐंगनां मॆ  बिथराय रहलॊ छै
जौरें आपनॊ  बूँदो के साथ

गरदौआ झरिया पड़ी - पड़ी कॆ
चटिया सीनी के पीछू पड़ी कॆ
घॊर दन्नॆं बैहाय रहलॊ छै
जौरें आपनॊ  बूँदो के साथ

गरदौआ झरिया पड़ी - पड़ी कॆ
रोपनी सथें राग मिलाय कॆ
रोपनी गीत गाय रहलॊ छै
जौरें आपनॊ  बूँदो के साथ

Angika Poetry : Gardowa Jharia
Poetry from Angika Poetry Book : Sarang
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Monday, June 29, 2015

झरिया मॆं ओलती


 झरिया मॆं ओलती

--- कुंदन अमिताभ ---

साँस आपनॊ सामान्य वेग सॆं
चली रहलॊ छै निश्चित दिशा मॆं
कखनू शरीर केरॊ भीतर
कखनू शरीर सॆं बाहर

इच्छा आपनॊ असामान्य गति सॆं
बढ़ी रहलॊ छै अनिश्चत दिशा मॆं
एगॊ बेढभ काया ऐन्हॊ असामान्य रूपॊ मॆं
भविष्य केरॊ सुखद चेहरा मनॊ मॆं बनैतॆं

सामान्य आरू  असामान्य  टकराबै छै
बादल ऐन्हॊ करकराबै छै
पड़ै लागै छै झरिया
चूऎ लागै छै ओलती  दुक्खॊ के

जेना - जेना  मनॊ  मॆं इच्छा बढ़ै छै
दुःख आरू बढ़लॊ जाय छै
झरिया के बाद केरॊ
हरियैलॊ घास जेकाँ

 जोंय तोंय  इच्छा कॆ वश मॆं
करै पारौ तॆ  दुःख झरी जाय छै
फूलॊ के उपर पड़ी रहलॊ
झरिया केरॊ पानी ऐन्हॊ अपने आप


Angika Poetry : Jharia Mein Oltee
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Sunday, June 28, 2015

हायजैक


 हायजैक

--- कुंदन अमिताभ ---

गाँव सॆं शहर ऐथैं
चौंधियाय जाय छियै
हायजैकर हाथॆं हायजैक 
होय जाय छिऐ- हम्मॆं

हमरॊ आपनॊ भाषा अंगिका कॆ
छिनी लै छै हमरा सॆं
आरू हमरॊ जुबान बंद करी दै छै
मुँहॊ कॆ साटी दै छै

कहै छै जॊंय जिंदा रहना छौं
तॆ अंगिका मॆं बोलना
बंद करै लॆ परथौं
हर हालत मॆं

हम्मॆं हथियार निकालै छियै
आपनॊ आत्मरक्षा वास्तॆं
हिन्दी मॆं बतियाबॆ लागै छियै
धाराप्रवाह हिन्दी मॆं

हायजैकरॆं घूरी - घूरी देखै छै
प्रश्न करै छै कि की
हिन्दी बतियैला सॆं बची जैबै
खिसियाय कॆ हमरा पटकै छै

होश आबै छै तॆ पाबै छियै
अपना कॆ अंग्रेजी सॆं पूरा लैस
हमरॊ अंगिका हमरॊ हिन्दी
कहीं हेराय गेलॊ रहै

हम्मॆं अंग्रेजी के ड्रग पीबी-पीबी
मतियैलॊ रहॆ लागलियै
हमरॊ दुनियां बदली गेलॊ रहै
बदन पर चकाचौंध केरॊ स्टीकर चिपकी गेलै

हायजैकरॆं हमरा आजाद करी देलकै
अंग्रेजी के गुलाम बनाय कॆ
अंग्रेजी के ड्रग पिलाय - पिलाय कॆ
हमरॊ संस्कृति कॆ डुबाय कॆ

इ तॆ संयोग ऐन्हॊ बनलै कि
ड्रग बार मॆं एगॊ मिली गेलै
कहलकै - " की भाय की हालचाल छै ? " 
अंगिका सुनी कॆ होश ऐलै

ओॆहीं लॆ लानलकै फिरू सॆं गाँव
लोगें कहै छै हम्मॆं कत्ते स्मार्ट
बनी गेलॊ छियै - भगवान करॆ
ऐन्हॊ हायजैक तॆं सबके हुऎ

ओकरा की पता हमरॊ अंदर के हालत
सब लुटी गेलॊ रहै - भाषा, संस्कृति सब
लुटेरा सथें रही कॆ लुटेरा बनी गेलॊ रहौं
अंग्रेजी के चमक सॆं सबकॆ लूटॆ सकै छेलौं

हमरा अबॆ बार - बार यहॆ डॊर 
लगी रहलॊ छेलै कि लुटेरा प्रवृत्ति
के साथ कहीं अंगिका आरू हिंदी केरॊ 
हायजैकर नै बनी जाँव

Angika Poetry : Hijack
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Saturday, June 27, 2015

गल्ला जब्भॊ


 गल्ला जब्भॊ 

--- कुंदन अमिताभ ---

उजास होला के बाद भी  कहीं सुतले नै रही जाहॊ
फैरछॊ के बाद भी कहीं अन्हारे मॆं रहै के  अहसास नै  हुऔं
इ लेली तॆ समय पर भोरे - भोर जगाय दै छियौं बाँग दै कॆ
लेकिन इ तॆ तय छै कि कोनॊ कुटुम आबी जैथौं तॆ
सभसॆं पहले हमरे गल्लॊ जब्भॊ करै लॆ सोचभॊ

तोंय हमरा माय - बाबू सथें भी  तॆ यहॆ करलॊ
हमरा मामा - बाबा सथें भी तॆ यहॆ करलॊ
तोंय आपनॊ खस्सी, बकरी सथें भी तॆ यहॆ करलॊ
तोंय आपनॊ बरद, गाय सथें भी तॆ यहॆ करलॊ
या तॆं माँस लेली काटी लेल्हॆ नै तॆ बेची देल्हॊ बूचड़खाना मॆं

ठीक छै कि बाँग  लेली दोसरॊ मुर्गा मिली जैथौं
ठीक छै कि अंडा लेली दोसरॊ मुर्गी मिली जैथौं
ठीक छै कि दूध लेली दोसरॊ गाय मिली जैथौं
ठीक छै कि जोतै लेली दोसरॊ बरद मिली जैथौं
ठीक छै कि माँस लेली दोसरॊ खस्सी मिली जैथौं

इ भी ठीक छै कि  तोंही  पाललॆ - पोसलॆ  हमरा सब कॆ 
इ भी ठीक छै कि  तोंही  पाललॆ - पोसलॆ  मुर्गी  सब कॆ
इ भी ठीक छै कि  तोंही  पाललॆ - पोसलॆ  गाय सब कॆ 
इ भी ठीक छै कि  तोंही  पाललॆ - पोसलॆ  बरद  सब कॆ 
इ भी ठीक छै कि  तोंही  पाललॆ - पोसलॆ  खस्सी सब कॆ 

लेकिन इ जे जंगल काटी रहलॊ छहॊ
लेकिन इ जे पहाड़ काटी रहलॊ छहॊ
लेकिन इ जे नद्दी नाशी रहलॊ छहॊ
हेकरा तॆ तोंय नै  पाललॆ - पोसलॆ नै तोंय बनैल्हॆ
ना ही एक बार नाशला के बाद इ फिर आबै वाला छै
ऐनहॊ धातॊ सॆं तोंय केकरॊ गल्लॊ जब्भॆ करी रहलॊ छहॊ ?

Angika Poetry : Galla Jabhhow
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Friday, June 26, 2015

कैसनॊ ज्ञान


कैसनॊ ज्ञान

--- कुंदन अमिताभ ---

जे ज्ञान तोंय अर्जलॆ छहॊ ओंय
जोंय तोरॊ भोलापन ही खतम करी दहौं
तॆ  इ ज्ञान कोन कामॊ के
इ ज्ञान  तॆ एक बोझ ही भेलै
जिनगी बगदाय देथौं

जे ज्ञान तोंय अर्जलॆ छहॊ ओंय
जोंय तोरा सुपरमैन केरॊ एहसास दिलाभौं
तॆ  इ ज्ञान कोन कामॊ के
इ ज्ञान  तॆ एक बोझ ही भेलै
जिनगी बगदाय देथौं

जे ज्ञान तोंय अर्जलॆ छहॊ ओंय
जोंय तोरा ज्ञानी होय केरॊ एहसास दिलाभौं
तॆ  इ ज्ञान कोन कामॊ के
इ ज्ञान  तॆ एक बोझ ही भेलै
जिनगी बगदाय देथौं

जे ज्ञान तोंय अर्जलॆ छहॊ ओंय
जोंय तोरा  खुशी के एहसास नै दिलाभौं
तॆ  इ ज्ञान कोन कामॊ के
इ ज्ञान  तॆ एक बोझ ही भेलै
जिनगी बगदाय देथौं

जे ज्ञान तोंय अर्जलॆ छहॊ ओंय
जोंय तोरा मुक्त होय के एहसास नै दिलाभौं
तॆ  इ ज्ञान कोन कामॊ के
इ ज्ञान  तॆ एक बोझ ही भेलै
जिनगी बगदाय देथौं

जे ज्ञान तोंय अर्जलॆ छहॊ ओंय
जोंय तोरॊ  मन के अशुद्ध करौं
तॆ  इ ज्ञान कोन कामॊ के
इ ज्ञान  तॆ एक बोझ ही भेलै
जिनगी बगदाय देथौं


Angika Poetry : Kasnow Gyani
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Thursday, June 25, 2015

लत्तर


लत्तर

--- कुंदन अमिताभ ---

सौसे बदन पर लतरैलॊ छै
लतरिया ऐन्हॊ  भटकलॊ मन
बदन केरॊ कोय जोर नै
कान छै पर सूनै छै
खाली बाहर के - अन्दर के नै
आँख छै पर देखै छै
खाली बाहर के - अन्दर के नै
मती छै पर परखै छै
खाली बाहर के - अन्दर के नै
नाक छै पर सूँघै छै
खाली बाहर के - अन्दर के नै

जीवन एगॊ जंग छेकै
डॉक्टर बीमारी सॆं लड़ै छै
शिक्षक अज्ञान सॆं लड़ै छै
वकील अन्याय सॆं लड़ै छै
एक मानव रूपॊ मॆं इंसान मन सॆं लड़ै छै
भटकलॊ मन के लत्तर एतना बरियॊ 
कि बदन पस्त होय जाय छै
मन  शरीर कॆ भटकाबै छै बाहर
जबकि दुश्मन छै सँखरैलॊ  अंदर
बाहर केरॊ  दुश्मन खोजना आसान छै
अंदर छुपलॊ  दुश्मन खोजना छै मुश्किल

असल जंग  आपनॊ अंदर सॆं छै
अज्ञानता मन मॆं निराशा लानै छै
जीवन जंग लड़ै के अनिच्छा निराशा  लानै छै
अर्जून निराश छेलै - लड़ै लॆ नै चाहै छेलै
ओकरॊ हाथ सॆं धनुष गिरी पड़लै
औंगरी काँपै लागलै 
घबराहट सॆं सौसे शरीर घामी गेलै
कृष्ण नॆं जागरूक रहै  लॆ  कहलकै अर्जुन कॆ
सजग रही के  जंग करै के प्रेरणा देलकै
सजग रही के जंग करै के  निश्चय करला सॆं
बदन सॆं  भटकलॊ मनॊ के लत्तर हटॆ पारॆ

Angika Poetry : Lattar
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Wednesday, June 24, 2015

सुपती मौनी सॆं जादा नै


सुपती मौनी सॆं जादा नै

--- कुंदन अमिताभ ---

सुपती मौनी खेलतॆं - खेलतॆं
अचकलॊ आबी गेलै बिदाई दिन
मचकलॊ लागॆ लगलै जिनगी
तॆ दोष केकरॊ - भाग्य के कि माय के कि बाबू के

सुपती मौनी खेलतॆं - खेलतॆं
अचकलॊ आबी गेलै  सनेश
सरकलॊ पहुँचलै निरमोही ससुर बिदागिरी लॆ
तॆ दोष केकरॊ - भाग्य के कि माय के कि बाबू के

सुपती मौनी खेलतॆं - खेलतॆं
अचकलॊ आबी गेलै  लॊर
ससरलॊ  बहॆ  लगलै गंगा धार
तॆ दोष केकरॊ - भाग्य के कि माय के कि बाबू के

सुपती मौनी खेलतॆं - खेलतॆं
अचकलॊ जमी गेलै  गोर
कचकलॊ  लगै  लगलै हिरदय
तॆ दोष केकरॊ - भाग्य के कि माय के कि बाबू के

सुपती मौनी खेलतॆं - खेलतॆं
अचकलॊ  नजर भेलै किधोर
घड़कलॊ लगै लगलै  ओर छोर
तॆ दोष केकरॊ - भाग्य के कि माय के कि बाबू के

सुपती मौनी खेलतॆं - खेलतॆं 
संस्कार चिकरतॆं रहलै हर पल पर
बाल विवाह के बलि  चढ़तॆं रहलॊॆ 
तॆ दोष केकरॊ - भाग्य के कि माय के कि बाबू के

सुपती मौनी खेलतॆं - खेलतॆं 
भाग्य कॆ कोसतॆं रहलॊं हर पल पर
जिनगी तबाह होतॆ  देखतॆं रहलॊॆं
तॆ दोष केकरॊ - भाग्य के कि माय के कि बाबू के

Angika Poetry : Supti Mouni Se Jaada Nai
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Tuesday, June 23, 2015

बाबा हम्मॆं शर्मिंदा


बाबा हम्मॆं शर्मिंदा

--- कुंदन अमिताभ ---

साईं बाबा हम्मॆं शर्मिंदा

गाछी लगाँ परलॊ पत्थर कॆ भी पूजै घड़ियाँ
नै जानै के कोशिश करलियै
कि कैन्हॊ पत्थर छै के लानलॆ छै
कहाँ सॆं लानलॆ छै
बस सिंनूर - टीका लगाय पूजी करी कॆ
मन प्राण कॆ परम ईश  सॆं जोड़तॆं रहलियै
पर साईं तोंय तॆ जहिया फकीर रूपॊ मॆं
शिरडी ऐलो रहॊ तहिया भी
आरू आय जबॆ समाधि मॆं छो
तभियॊ प्रश्नॊ के बौछार झेली रहलॊ छो
बार - बार पूछै छियौं --- कहाँ सॆं ऐल्हॆ साईं, कहाँ सॆं
साईं बाबा हम्मॆं शर्मिंदा

तोंय न्योतल्हॊ सबकॆ कहलॊ जे भी ऐतै शिरडी
सब अपाय तत्क्षण हरी लेभॊ 
तोंय कहलो चढ़ॊ समाधि के सीढ़ी  दुःख - दरिद्री चिंता सब मिटाय देभॊ
तोंय कहलो देह त्यागी देलियै तॆ कि आपनॊ भक्तॊ लेली दौड़लो ऐभॊ
तोंय कहलो समाधि पॆ भरोसा रखॊ इ सबके मनोकामना पूरा करतै
तोंय कहलो इ अक्षरशः सत्य मानॊ कि तोंय जिन्दा छो - कहलॊ नित प्रचीति लॆ
तोंय कहलॊ सबकेरॊ मालिक एक
हम्मॆं पूछलियै मंदिर - मस्जिद जाय वाला बाबा 
तोंय के छेकॊ कहाँ सॆं ऐलॊ  छहॊ
इ तॆ बताबॊ तोरॊ जात की तोरॊ धर्म की 
तोरॊ तॆ नाम भी नै छौं कोनो धर्मग्रन्थॊ मॆं
साईं बाबा हम्मॆं शर्मिंदा

शिरडी साईं बाबा तोंय तॆ चुनौती  देल्हॊ
कहलॊ कि बताबॊ जों कोय खाली हाथ
कोय  अनुत्तर लौटलॊ छै , तोरा दरबार सॆं
तोरा भक्तॊ के कत्तॆ ख्याल छौं - हेकरै सॆं  पता चलै छै
तोंय तॆ यहाँ तलक कहलॊ कि  निःसंशय
भक्तॊ के सब भार उठैभॊ - सब  माँग पूरा करभॊ
हम्मॆं  तोरा वैदिक धर्म लेली एगॊ अभिशाप बतलैलिहौं
कहलिहौं तोरो पूजा करना ही गलत छेकै 
तोरो पूजा करना हिंदू धरम कॆ बाँटै के साजिश छेकै
पूजा गुरू या अवतार के करलॊ जाय छै  - तोंय तॆ कुछ नै
तोंय बिष्णु केरॊ चौबीस अवतारॊ मॆं भी नै छो
तोंय तॆ पंडारक समाज केरॊ अदना सा औलाद
साईं बाबा हम्मॆं शर्मिंदा

तोरॊ  तॆ कोय नै, जीवन निर्वाह भी भिक्षाटन सॆं करै रहॊ
भक्तॊ के पाप आरू दुर्भाग्य हटाबै लॆ आटा पीसै मॆं लागलॊ  रहै छेलॊ  -
जाता केरॊ दू पाट - भक्ति आरू कर्म  आरू जाता  के मुठिया - ज्ञान सॆं
तोरॊ तॆ दृढ़ विश्वास छेल्हौं  कि  दुष्कर छै मानव हृदय सॆं
गलत प्रवृत्ति, आसक्ति, घृणा, अहंकार केरॊ नष्ट होना
जब तलक नष्ट नै होय छै - आत्मानुभूति संभव नै
कि बाबा तोंय समाघि मॆं  भी अभी चक्की पीसी रहलॊ छहॊ
 जेकरा सॆं हमरा आत्मानुभूति हुऎ सकॆ
तोरा सॆं बढ़ी कॆ के गुरू हुऎ सकै छै
तोरॊ हम्मॆं केना पूजा अर्चना नै करबै
साईं बाबा तोरॊ कर्ज केना करलॊ जैतै अदा
साईं बाबा हम्मॆं शर्मिंदा

Angika Poetry : Baba Hammein Sharminda
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Monday, June 22, 2015

मतरसुन्न लहर


मतरसुन्न लहर

--- कुंदन अमिताभ ---

समुंदर केरौ गर्भ सँ उठी करगी सँ
टकराबै छै  - मतरसुन्न लहर

केकरो नै सुनै छै खाली आपनौ
इ सुनाबै छै - मतरसुन्न लहर

दूर सँ एकदम शांत लगीच सँ चंचल
इ हियाबै छै - मतरसुन्न लहर

ढेंस ल-ल करी चट्टानौ क भी हरदम
ललकारै छै  - मतरसुन्न लहर

घहरी-घहरी करी क सब्भै पर कहर
बरपाबै छै  - मतरसुन्न लहर

हहरी-हहरी करी क ई सब्भै क ही
बहियाबै छै - मतरसुन्न लहर

धरा मिलन  सँ  खुश होय क करगी प फेन
छिरियाबै छै - मतरसुन्न लहर

कवरल  संगीत  केरौ लय ल क गीतो  
गुनगुनबै छै - मतरसुन्न लहर

सागर संगम केरौ प्रण ल क बूँदौ मँ
छहराबै छै - मतरसुन्न लहर ।

Angika Poetry : Matarsunna Lahar
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Sunday, June 21, 2015

योग योग छेकै


योग योग छेकै

--- कुंदन अमिताभ ---

नै घटाव सॆं  छै रिश्ता नै गुणा भाग सॆं
योग योग छेकै आत्मा के परमात्मा सॆं

योग  छेकै  बैहार  बीच 
बनलॊ  रस्ता, पगडंडी
जेकरा पर डेगे डेग बढ़ला पर  
व्यक्तिगत चेतना के  मिलन होय छै  
सार्वभौमिक चेतना सॆं 
योग योग छेकै आत्मा के परमात्मा सॆं

योग  छेकै  बैहार  बीच 
बनलॊ  आर, अड्डा
जेकरा पर कलॆ कलॆ बढ़ला पर  
व्यक्तिगत रूह के मिलन होय छै  
सार्वभौमिक रूह  सॆं 
योग योग छेकै आत्मा के परमात्मा सॆं

योग  छेकै  बैहार बीच 
बनलॊ नहर, नद्दी 
जेकरा मॆं  कलॆ - कलॆ हेली कॆ 
व्यक्तिगत प्राणशक्ति के मिलन होय छै  
सार्वभौमिक प्राणशक्ति  सॆं 
योग योग छेकै आत्मा के परमात्मा सॆं

योग  छेकै  बैहार बीच 
बनलॊ  बड़का चौर 
जेकरा कलॆ - कलॆ पार करी कॆ  
व्यक्तिगत प्रज्ञा के मिलन होय छै  
सार्वभौमिक प्रज्ञा  सॆं 
योग योग छेकै आत्मा के परमात्मा सॆं


योग  छेकै  बैहार  बीच 
बनलॊ  छोटॊ - छोटॊ डाँर
जेकरा टप्पी  करी कॆ 
व्यक्तिगत आत्मा के मिलन होय छै  
सार्वभौमिक आत्मा  सॆं 
योग योग छेकै आत्मा के परमात्मा सॆं

योग  खाली शरीर आरू मन
मन आरू आत्मा के योग नै छेकै
योग  छेकै   एगॊ  महासंयोग
जेकरॊ गोदी मॆं बैठी कॆ कलॆ-कलॆ   
ठीक होय छै  तन, मन, आत्मा 
योग योग छेकै आत्मा के परमात्मा सॆं

Angika Poetry : Yog Yog Chhekai
Poetry from Angika Poetry Book : Sarang
Poet : Kundan Amitabh
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Saturday, June 20, 2015

कल भी कल भी


कल भी कल भी 

--- कुंदन अमिताभ ---

ताड़ॊ गाछी सॆं पकलॊ ताड़ गिरी पड़लै
घरॊ पीछू लद्दी मॆं - धप्प सॆं आवाज ऐलै
नीन टूटी गेलै आधे रात कॆ
लग्गा लॆ कॆ आबी गेलॊ छियै नद्दी किछ्छा
भादो के नद्दी पानी किधोर बही रहलॊ छै कोरे - कोर
टार्च भी छै हाथ मॆं
ताड़ निकालै के अभियान शुरू होय गेलॊ छै

ताड़ वू पार करगी मॆं 
सिनवारी लगाँ अटकलॊ छै
लग्गा जादे लम्बा नै छै 
इ लेली  कुछ आरू करै लॆ होतै
इ पार एकदम नद्दी करगी मॆं  ही 
लागलॊ  छै बसबिट्टा
जेकरा सॆं जोगार बनी जैतै

एगॊ बाँसॊ कॆ थामी कॆ 
झुल्ली गेलियै बीच धार मॆं 
जोखिम छै - धार बहुत तेज छै 
 लेकिन ताड़ कॆ भी तॆं बही कॆ नै जाबॆ देना छै
ताड़ लग्गा के पहुँच मॆं आबी गेलॊ छै 
लग्गा सहारे थापी - थापी  कॆ ताड़ 
इ करगी पर  आपनॊ हाथॊ मॆ आबी गेलॊ छै

करगी  मॆ होय गेलॊ पिच्छड़  सॆं
पिछड़तॆं -पिछड़तॆं बचलियै
बसबिट्टा मॆ  लम्बा  धमना साँप 
दरबन मारतॆं  घुसतॆं नजर ऐलै
नीम डाली पर कुछ परिंदा 
कुनमुन - कुनमुन करतॆं नजर ऐलै
बाड़ी टप्पी कॆ  तेजी सॆं अँगना आबी गेलियै

बाड़ी  दनकरॊ केबड़ा भिरकाबै वाला रहियै
कि  बूलॊ बाबू आबी गेलै - हमरॊ पड़ोसी
कहै लागलै - हौ ताड़ हमरा गाछी सॆं नै
हुनकॊ गाछी सॆं गिरलॊ रहै - धारॊ मॆं
बही कॆ आबी गेलॊ रहै हमरा दन्नॆं
कहलियै टूटथैं  गेलॊ रहियै देखलियै हमरे गाछी लगाँ परलॊ रहै
बूलॊ बाबू कहलकै कि हुनखौ जगाय देतियै तॆ नै पतियाबै के सवाले नै रहै

बूलॊ बाबू  पतियाय कॆ आपनॊ अँगना लौटी गेलॊ रहै
 भुरूकबा उगी  रहलॊ छेलै अन्हार बिलाय रहलॊ छेलै
माल जाल खुली रहलॊ छेलै तारा डुबी रहलॊ छेलै
हर वू चीज बिलैतै जे बियैलॊ छै  इ धरती पर
हर वू चीज डूबतै जे उगलॊ छै  इ धरती पर
इंसान केरॊ संघर्ष जारी रहतै समय सथॆं
कैन्हॆं कि समय सॆं  जादा नै कोय बलवान नै कोय सामर्थ्यवान

Angika Poetry : Kal Bhi Kal Bhi
Poetry from Angika Poetry Book : Sarang
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Friday, June 19, 2015

घटा घनघोर


घटा घनघोर 

--- कुंदन अमिताभ ---

घटा घनघोर घटा घनघोर
छैलॊ छै घटा घनघोर
छटा हर ओर छटा हर ओर
अनुपम छै छटा हर ओर

गमक हर ओर गमक हर ओर
फूलॊ के गमक हर ओर
झनक हर ओर झनक हर ओर
झींगुरॊ के झनक हर ओर

ठनक हर ओर ठनक हर ओर
ठनका के ठनक हर ओर
खनक हर ओर खनक हर ओर
चूड़ी के खनक हर ओर

चमक हर ओर चमक हर ओर
बिजुरी के चमक हर ओर
चनक हर ओर चनक हर ओर
बयारॊ के चनक हर ओर

धमस हर ओर धमस हर ओर
दुलहन के धमस हर ओर
हुलस हर ओर हुलस हर ओर
जोड़ा के हुलस हर ओर

घमा घमजोर घमा घमजोर
रोपनी सब घमा घमजोर
नाचै मनमोर नाचै मनमोर
किसानॊ के नाचै मनमोर

बहस हर ओर बहस हर ओर
बूहॊ के बहस हर ओर
तरस हर ओर तरस हर ओर
रौदा लॆ तरस हर ओर

Angika Poetry : Ghata Ghanghor
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Poet : Kundan Amitabh
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Thursday, June 18, 2015

जिल्द


जिल्द 

--- कुंदन अमिताभ ---

जीवन  तोरॊ हमरॊ  
एगॊ  किताब ऐन्हॊ उपहार
इ उपहार ढकलॊ छै जिल्दॊ सॆं
जिल्द बड़ा ही नाजुक छै
उपहार  कॆ ठीक  सॆं राखै  लेली
जरूरी छै जिल्द कॆ ठीक सॆं रखना
ऐन्हॊ नै हुऎ कि जिल्दॊ सथॆं
उपहार भी नष्ट होय जाय

भगवान केरॊ देलॊ  इ  अमूल्य शरीर 
एगॊ जिल्द ही तॆ छेकै
वातावरण  परिवेश जेकरा मॆं रही रहलॊ छियै 
एगॊ जिल्द ही तॆ छेकै
पल पल उत्पन्न  होय रहलॊ परिस्थिति 
एगॊ जिल्द ही तॆ छेकै
हर  घड़ी घटित होय  रहलॊ घटना 
एगॊ जिल्द ही तॆ छेकै

धैर्यवान बनी कॆ  उपहार केरॊ आनन्द लॆ
बुद्धिमान बनी कॆ  उपहार केरॊ आनन्द लॆ
सहनशील बनी कॆ उपहार केरॊ आनन्द लॆ
अनुकुल बनी कॆ  उपहार केरॊ आनन्द लॆ
दूरदृष्टा बनी कॆ  उपहार केरॊ आनन्द लॆ
संपुष्टिता बनी कॆ  उपहार केरॊ आनन्द लॆ
दुःखहर्ता बनी कॆ  उपहार केरॊ आनन्द लॆ
विषहर्ता बनी कॆ  उपहार केरॊ आनन्द लॆ

Angika Poetry : Jild
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Wednesday, June 17, 2015

नथ बुलाक आरू पैजनिया


नथ बुलाक आरू पैजनिया 

--- कुंदन अमिताभ ---

सजनी जे मिललॆ राहॊ मॆं मन भरमैलॊ छै
तोरॊ  बात समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ धात समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ  रीत समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ  गीत समझ नै ऐल्हौं
ऐल्हौं तॆ बस ----
नथ,बुलाक आरू पैजनिया 

सूरज अस्त होय कॆ गंगा घाट पहुँचलॊ छै
तारा सब  देखॊ सोझे अँगना सोझियैलॊ छै
ढघरॊ पर खाली सगरे सन्नाटा छितरैलॊ छै
सजनी जे मिललॆ राहॊ मॆं मन भरमैलॊ छै
तोरॊ  बात समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ धात समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ  रीत समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ  गीत समझ नै ऐल्हौं
ऐल्हौं तॆ बस ----
नथ,बुलाक आरू पैजनिया 

सरदी केरॊ नील गगन पॆ कोहरा  कोहरैलॊ छै
रौद  कहीं दूर पहाड़  के पीछू सीधियैलॊ छै
आगिन के गरमी सॆं ही हर पल नितरैलॊ छै
सजनी जे मिललॆ राहॊ मॆं मन भरमैलॊ छै
तोरॊ  बात समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ धात समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ  रीत समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ  गीत समझ नै ऐल्हौं
ऐल्हौं तॆ बस ----
नथ,बुलाक आरू पैजनिया 

बागॊ  कॆ फूलॊ पर  देखॊ भौंरा  मँडरैलॊ छै
फूलॊ के वास सगर ही हवा मॆं छिरियैलॊ छै
कोयल के कूहू कूहू सॆं कन कन मतियैलॊ छै
सजनी जे मिललॆ राहॊ मॆं मन भरमैलॊ छै
तोरॊ  बात समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ धात समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ  रीत समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ  गीत समझ नै ऐल्हौं
ऐल्हौं तॆ बस ----
नथ,बुलाक आरू पैजनिया 

सघन करियॊ घटा  दलमल उमतैलॊ छै
व्योम विस्तृत भाल बेवजह हदियैलॊ छै
जगह जगह झरना  झर झर झरझरैलॊ छै
सजनी जे मिललॆ राहॊ मॆं मन भरमैलॊ छै
तोरॊ  बात समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ धात समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ  रीत समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ  गीत समझ नै ऐल्हौं
ऐल्हौं तॆ बस ----
नथ,बुलाक आरू पैजनिया 

छुमछुम छनन  छन बाजे  तोरॊ पाँव पैजनिया
चरम उत्कर्ष के छटा बाँधै बुलाक आरू नथनिया
संगीत -छटा केरॊ इ संगम सॆं  हीं जीवन उपलैलॊ छै
सजनी जे मिललॆ राहॊ मॆं मन भरमैलॊ छै
तोरॊ  बात समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ धात समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ  रीत समझ नै ऐल्हौं
तोरॊ  गीत समझ नै ऐल्हौं
ऐल्हौं तॆ बस ----
नथ,बुलाक आरू पैजनिया 

Angika Poetry : Nath Bulak Aaroo Paijania
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Tuesday, June 16, 2015

सौभाग्यशाली तोंय


सौभाग्यशाली तोंय 

--- कुंदन अमिताभ ---

तोंय  कत्तॆ  सौभाग्यशाली छहॊ
तोंय  कत्तॆ  नसीबवाला छहॊ
इ याद रखै के बात छेकै 
आरू अनुभव करै के भी
तभिये तोरा पता चलथौं
तोंय  कत्तॆ  सौभाग्यशाली छहॊ

तोंय  अक्सर  इ भूली जाय छहॊ
तोंय भूली जाय छो कि  सौभाग्यशाली छहॊ
जबॆ भूली जाय छहॊ  दुःखी रहै छहॊ
इ याद रखै के बात छेकै 
आरू अनुभव करै के भी
तभिये तोरा पता चलथौं
तोंय  कत्तॆ  सौभाग्यशाली छहॊ

तोंय  अक्सर  इ  याद राखै छहॊ
तोंय याद  पारनॆ राखै छो कि  दुर्भाग्यशाली छहॊ
जबॆ याद राखै छहॊ  दुःखी रहै छहॊ
इ याद रखै के बात छेकै 
आरू अनुभव करै के भी
तभिये तोरा पता चलथौं
तोंय  कत्तॆ  सौभाग्यशाली छहॊ

तोंय  अक्सर  इ भूली जाय छहॊ
तोंय भूली जाय छो कि  लायक  छहॊ
जबॆ भूली जाय छहॊ  दुःखी रहै छहॊ
इ याद रखै के बात छेकै 
आरू अनुभव करै के भी
तभिये तोरा पता चलथौं
तोंय  कत्तॆ  सौभाग्यशाली छहॊ

तोंय  अक्सर  इ  याद राखै छहॊ
तोंय याद  पारनॆ राखै छो कि  नालायक छहॊ
जबॆ याद राखै छहॊ  दुःखी रहै छहॊ
इ याद रखै के बात छेकै 
आरू अनुभव करै के भी
तभिये तोरा पता चलथौं
तोंय  कत्तॆ  सौभाग्यशाली छहॊ

तोंय  अक्सर  इ भूली जाय छहॊ
तोंय भूली जाय छो कि  दोषी  छहॊ
जबॆ भूली जाय छहॊ  दुःखी रहै छहॊ
इ याद रखै के बात छेकै 
आरू अनुभव करै के भी
तभिये तोरा पता चलथौं
तोंय  कत्तॆ  सौभाग्यशाली छहॊ

तोंय  अक्सर  इ  याद राखै छहॊ
याद  पारनॆ राखै छो कि  दुनिया दोषी तोंय निर्दोष छहॊ
जबॆ याद राखै छहॊ  दुःखी रहै छहॊ
इ याद रखै के बात छेकै 
आरू अनुभव करै के भी
तभिये तोरा पता चलथौं
तोंय  कत्तॆ  सौभाग्यशाली छहॊ

तोंय  अक्सर  इ भूली जाय छहॊ
तोंय भूली जाय छो कि  आत्मज्ञानी  छहॊ
दुःख तोरा आत्मा दन्ने लॆ जाय छै
इ याद रखै के बात छेकै 
आरू अनुभव करै के भी
तभिये तोरा पता चलथौं
तोंय  कत्तॆ  सौभाग्यशाली छहॊ

तोंय  अक्सर  इ  याद राखै छहॊ
याद  पारनॆ राखै छो कि  तोंय अज्ञानी छहॊ
जबॆ याद राखै छहॊ  दुःखी रहै छहॊ
इ याद रखै के बात छेकै 
आरू अनुभव करै के भी
तभिये तोरा पता चलथौं
तोंय  कत्तॆ  सौभाग्यशाली छहॊ

तोंय  अक्सर  इ भूली जाय छहॊ
तोरा लगाँ सब कुछ छौं ---
विवेक, हँसी, सेवा, मौन, गाना, नाचना, विनोद, दान, उत्सव सब
जबॆ भूली जाय छहॊ  दुःखी रहै छहॊ
इ याद रखै के बात छेकै 
आरू अनुभव करै के भी
तभिये तोरा पता चलथौं
तोंय  कत्तॆ  सौभाग्यशाली छहॊ

तोंय  अक्सर  इ  याद राखै छहॊ
याद  पारनॆ राखै छो कि  तोरा लगाँ कुछ  नै छौं --
बस  छौं तॆ चुगली, समस्या, जटिलता, हठता 
जबॆ याद राखै छहॊ  दुःखी रहै छहॊ
इ याद रखै के बात छेकै 
आरू अनुभव करै के भी
तभिये तोरा पता चलथौं
तोंय  कत्तॆ  सौभाग्यशाली छहॊ


Angika Poetry : Soubhagyashali Toein
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Monday, June 15, 2015

बगरॊ


बगरॊ 

--- कुंदन अमिताभ ---

बिना हाथ के चोंचॊ सॆ ही
तिनका-तिनका चूनै छी
चीं-चीं चीं-चीं करी करी कॆ
आपनॊ घर कॆ बूनै छी

हमरॊ शरीर बड्डी छोटॊ
पैखना पर भी ओछॊ छींटॊ
गोर करै छै डगमग डगमग
गरदा सॆं दाना चूनै छी
चीं-चीं चीं-चीं करी करी कॆ
आपनॊ घर कॆ बूनै छी

नै हमरा खेत खलिहान
नै कोनॊ कोठी - गोदाम
रोजाना ही घुमी घुमी कॆ
पेटॊ मॆं दाना सैतै छी
चीं-चीं चीं-चीं करी करी कॆ
आपनॊ घर कॆ बूनै छी

साथी पंछी उड़ी उड़ी कॆ
परदेशॊ मॆं घूमै छै
हम्में बगरॊ रही सही कॆं
गामॊ के ढग्घर ही घूमै छी
चीं-चीं चीं-चीं करी करी कॆ
आपनॊ घर कॆ बूनै छी

फुदकतॆं रहना भल्लॊ लगै छै
चहकतॆं रहना हौला लगै छै
बंद कोठरी कॆ छोड़ी करी कॆ
आजादी कॆ ही चुनै छी
चीं-चीं चीं-चीं करी करी कॆ
आपनॊ घर कॆ बूनै छी


Angika Poetry : Bagro
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Sunday, June 14, 2015

हम्मं॑ आगू सपना पीछू

--- कुंदन अमिताभ ---

हम्मं॑  एतना तेज दरबन लगैलियै
कि होय गेलियै हम्मं॑ आगू 
रही गेलै सपना पीछू
हम्मं॑ आगू सपना पीछू ।

मारी देलियै सबक॑ ------
साँप बिच्छू सथं॑ जोंकटी क॑ भी
भेड़िया लकड़बग्घा सथं॑ गाय क॑ भी
कृत्रिम साधन अपनाय लेलियै
अन्न उत्पादन के - दुग्ध उत्पादन के भी
कि होय गेलियै हम्मं॑ आगू 
रही गेलै सपना पीछू
हम्मं॑ आगू सपना पीछू ।

काटी देलियै सबक॑ ------
झार झंखार सथं॑ वन उपवन क॑ भी
करमी सिनवार सथं॑ सागवन क॑ भी
कृत्रिम साधन अपनाय लेलियै
बूहऽ प्रबंधन के - जल प्रबंधन के भी
कि होय गेलियै हम्मं॑ आगू 
रही गेलै सपना पीछू
हम्म॑ आगू सपना पीछू ।

पाटी देलियै सबक॑ ------
परती बंजर सथं॑ उपजाऊ मैदान क॑ भी
उच्चऽ-उच्चऽ पहाड़ सथं॑ पवन आसमान क॑ भी
कृत्रिम रसायन अपनाय लेलियै
उत्पादन वृद्धि के - वातावरण शुद्धि के भी
कि होय गेलियै हम्म॑ आगू 
रही गेलै सपना पीछू
हम्म॑ आगू सपना पीछू ।

नाशी देलियै सबक॑ ------
परिवार बाजार सथं॑ सौसै समाज क॑ भी
हटिया मेला सथं॑ चौपाल क॑ भी
कृत्रिम संवाद अपनाय लेलियै
मोबाइल सं॑ जोडै के - इंटरनेट सं॑ जोड़ै के भी
कि होय गेलियै हम्म॑ आगू 
रही गेलै सपना पीछू
हम्म॑ आगू सपना पीछू ।

हम्मं॑ ऐतना तेज दरबन लगैलियै
कि होय गेलियै हम्मं॑ आगू 
रही गेलै सपना पीछू
हम्मं॑ आगू सपना पीछू ।

Angika Poetry : Hamme Aagoo Sapna Peechhoo
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Saturday, June 13, 2015

चन्नी पत्ता


चन्नी पत्ता 

--- कुंदन अमिताभ ---

अबरी गाँमॊं सॆं  भौजी नॆ भेजाय देनै रहै
दू मुठ्ठा चन्नी के पत्ता  आरू तनी टा चन्नी के बीया
कहलबैनॆ छेलै कि पत्ता तॆ नै चलथौं जादा
बीया बूनी लिहॊ गमला मॆं  चलतें रहथौं सब दिना
डाली कॆ खैतें रहियॊ मछरी मॆं

दू दफा मछरी बनलै आरू चन्नी के पत्ता  खतम
हिन्नॆ चन्नी के बीया  बुनाय गेलॊ छेलै 
आरू लारॊ सॆं  झाँपी देलॊ गेलॊ रहै
जल्दिऎ चन्नी के पौध भी जनमी गेलॊ रहै
आरू चन्नी के पत्ता भॆ गेलै तैयार डालै लॆ मछरी मॆं 

झरोखा केरॊ बाहर केरॊ फ्लावर पॉट वाला जगह
बदली गेलॊ रहै गामॊ के इनारा लगाँकरॊ ढिम्मा मॆं
जेकरा पर लागलॊ चन्नी केरॊ खुशबू छिरियैतैं रहै हवा मॆं 
ढग्घर पर चलतॆं राहगीर भी बिना बतैनै जानी जाय रहै
आरू चन्नी के पत्ता तोड़ी लै रहै  डालै लॆ मछरी मॆं 

गाँव छुटला के बाद सबसॆं जादा याद आबै वाला मॆं
चन्नी के पत्ता भी छै - गामॊ के माटी पानी हवा ऐन्हॊ
मनुष्यॊ के पलायन  होना आसान छै मनॊ के नै
देहॊ सॆं हटी मन बार-बार लौटै छै इनारा लगाँकरॊ ढिम्मा मॆं
जहाँ चन्नी के पत्ता तैयार रहै  छै  टूटी कॆ डलै लॆ मछरी मॆं 

बुआरी,कतला,रोहू,टेंगड़ा,गैची,चेंगा,गरय,पोठिया,धनेरबा कि इचना
टोला मॆं जेकरा यहाँ भी ऐतै मछरी  इनारा  लगाँ राखलॊ 
खपरी मॆं छारॊ लॆ कॆ साफ करी कॆ सब चोय्याँ  छोरैलॊ जैतै
अँगना दन्ने बढ़ला के पहिनॆ  भंसिया हाथ  बढ़ैतै ढिम्मा दन्नॆ
जहाँ चन्नी के पत्ता तैयार रहै  छै  टूटी कॆ डलै लॆ मछरी मॆं 

इंसान इंसान केरॊ जानॊ के भूक्खड़ बनी जाय छै 
इंसान इंसान केरॊ जाल जमीन हसोतै मॆं लगी जाय छै
इंसान  इंसान केरॊ इज्जत कॆ मिटाबै मॆं भिड़ी जाय छै
सब रंगॊ जंगॊ के गवाह बनी सुस्वाद फैलैतॆं  रहै छै औढ़ी मॆ
चन्नी के पत्ता तैयार रहै  छै  टूटी कॆ डलै लॆ मछरी मॆं 

अबरी गाँमॊं सॆं  भौजी नॆ भेजाय देनै रहै
दू मुठ्ठा चन्नी के पत्ता  आरू तनी टा चन्नी के बीया
कहलबैनॆ छेलै कि पत्ता तॆ नै चलथौं जादा
बीया बूनी लिहॊ गमला मॆं  चलतें रहथौं सब दिना
डाली कॆ खैतें रहियॊ मछरी मॆं

Angika Poetry : Channi Patta
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Friday, June 12, 2015

आम तोरा सॆं डॊर लगै छै


आम तोरा सॆं डॊर लगै छै 

--- कुंदन अमिताभ ---

आम तोरा सॆं कहलॊ नै जाय छै

आम  अबॆ तोरा सॆं डॊर लगै छै

टिकोला  कैरी तलक  तॆ ठीक छै
पना चटनी अचार  भी नीक छै
कार्बाइड सॆं  पाकलॊ -घुललॊ  लाल सिंदुरी आम
पर चोभै मॆं जी हद तलक हदियाबै छै
आम तोरा सॆं कहलॊ नै जाय छै
आम  अबॆ तोरा सॆं डॊर लगै छै

अमचूर  आमखटाई तलक  तॆ ठीक छै
गुरम्मा जैम  मुरब्बा भी नीक छै
कार्बाइड सॆं  पाकलॊ -घुललॊ  लाल सिंदुरी आम
पर चोभै मॆं जी हद तलक हदियाबै छै
आम तोरा सॆं कहलॊ नै जाय छै
आम  अबॆ तोरा सॆं डॊर लगै छै

आमी गाछी के अंतर्छाल केरॊ क्वाथ तलक तॆ ठीक छै
मंजर छाल  जड़  पत्ता  भी नीक छै
कार्बाइड सॆं  पाकलॊ -घुललॊ  लाल सिंदुरी आम
पर चोभै मॆं जी हद तलक हदियाबै छै
आम तोरा सॆं कहलॊ नै जाय छै
आम  अबॆ तोरा सॆं डॊर लगै छै

गाछी मॆं पकलॊ बीजू  कलमी तलक तॆ ठीक छै
भुस्सा मॆं गारी कॆ पकलॊ मालदह दशहरी भी नीक छै
कार्बाइड सॆं  पाकलॊ -घुललॊ  लाल सिंदुरी आम
पर चोभै मॆं जी हद तलक हदियाबै छै
आम तोरा सॆं कहलॊ नै जाय छै
आम  अबॆ तोरा सॆं डॊर लगै छै

गाछी मॆं पकलॊ चौसा  फजली तलक तॆ ठीक छै
भुस्सा मॆं गारी कॆ पकलॊ केशर किसनभोग भी नीक छै
कार्बाइड सॆं  पाकलॊ -घुललॊ  लाल सिंदुरी आम
पर चोभै मॆं जी हद तलक हदियाबै छै
आम तोरा सॆं कहलॊ नै जाय छै
आम  अबॆ तोरा सॆं डॊर लगै छै

गाछी मॆं पकलॊ हिमसागर जरदालू तलक तॆ ठीक छै
भुस्सा मॆं गारी कॆ पकलॊ हापुस आम्रपाली भी नीक छै
कार्बाइड सॆं  पाकलॊ -घुललॊ  लाल सिंदुरी आम
पर चोभै मॆं जी हद तलक हदियाबै छै
आम तोरा सॆं कहलॊ नै जाय छै
आम  अबॆ तोरा सॆं डॊर लगै छै

गाछी मॆं पकलॊ लँगड़ा मलगोवा तलक तॆ ठीक छै
भुस्सा मॆं गारी कॆ पकलॊ बम्बईया, कलकतिया भी नीक छै
कार्बाइड सॆं  पाकलॊ -घुललॊ  लाल सिंदुरी आम
पर चोभै मॆं जी हद तलक हदियाबै छै
आम तोरा सॆं कहलॊ नै जाय छै
आम  अबॆ तोरा सॆं डॊर लगै छै

प्राकृतिक ढंग सॆं  पकलॊ आम तलक तॆ ठीक छै
भुस्सा मॆं गारी कॆ, लारॊ सॆं भरलॊ डब्बा मॆं पकाना भी नीक छै
कार्बाइड सॆं  पाकलॊ -घुललॊ  लाल सिंदुरी आम
पर चोभै मॆं जी हद तलक हदियाबै छै
आम तोरा सॆं कहलॊ नै जाय छै
आम  अबॆ तोरा सॆं डॊर लगै छै

प्राकृतिक ढंग सॆं  पकलॊ आम जहाँ कैंसर  तक भगाबै छै
भुस्सा लारॊ मॆं गारी कॆ पकलॊ आम भी देहॊ के दोष भगाबै छै
कार्बाइड सॆं  पाकलॊ -घुललॊ  लाल सिंदुरी आम
पर चोभै मॆं जी हद तलक हदियाबै छै
आम तोरा सॆं कहलॊ नै जाय छै
आम  अबॆ तोरा सॆं डॊर लगै छै

कार्बाइड  सॆं  पकलॊ आम जहाँ देहॊ के दोष बढ़ाबै छै
कार्बाइड  सॆं  पकलॊ आम  वहीं कैंसर तलक फैलाबै छै
कार्बाइड सॆं  पाकलॊ -घुललॊ  लाल सिंदुरी आम
चोभै मॆं जी हद तलक हदियाबै छै
आम तोरा सॆं कहलॊ नै जाय छै
आम  अबॆ तोरा सॆं डॊर लगै छै

आम तोरा सॆं कहलॊ नै जाय छै
आम  अबॆ तोरा सॆं डॊर लगै छै

Angika Poetry : Aam Tora Sein dor lagei chhai
Poetry from Angika Poetry Book : Sarang
Poet : Kundan Amitabh
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Thursday, June 11, 2015

डर

डर

--- कुंदन अमिताभ ---

दोसरा कॆ डराबै  वाला इंसान सबसॆं जादे डरपोक होय छै
जे डराबै छै - ओकरा  आस्तॆं -आस्तॆं डराबै मॆं मजा आबै लागै छै
डरैतॆं - डरैतॆं  वू  अपराधी बनी जाय छै - ओकरा पता भी नै चलै छै
जे डरै छै - वू आस्तॆं -आस्तॆं डराबै वाला सॆं परहेज करॆ लागै छै
डरतॆं - डरतॆं  वू अपराधी  केरॊ अपराध के शिकार बनॆ पारॆ छै 
जेकरा मॆं  अन्दरूनी साहस के कमी छै - ओहीं डराबै छै आपनॊ साहस कॆ नापै लॆ
जेकरा आपनॊ  अन्दरूनी साहस  आरू  ताकत के पहचान नै छै - ओहे डरै छै

डर अतीत केरॊ  अनुभव केरॊ प्रतिविम्ब हुऎ सकॆ छै
जे अखनी अवास्तविक रही कॆं भी भविष्य मॆं घटित होय के आभास दै छै
डरी जाना कखनू - कखनू फायदेमंद भी हुऎ सकै छै
केखरौ मरै केरॊ डर  ओकरॊ जीवन केरॊ रक्षा करै  सकै छै
गलती  करै केरॊ डर सही रास्ता पर चलाबै मॆं मदद करै सकै छै
बीमार होय केरॊ डर साफ-सफाई कॆ प्रोत्साहन पैदा करै सकै छै
दुःख केरॊ डर नेकी के रास्ता पर चलै के ललक पैदा करै  सकै छै


संसार  कॆ ठीक सॆं चलतॆं रहॆ के खातिर जरूरी छै भगवान केरॊ डर
भगवान केरॊ  डर केरॊ नॊन ऐन्हॊ मात्रा  भी मार्गदर्शक केरॊ काम करै सकै छै 
डर  रूपी ईश्वरीय प्रेम - जे भटकी गेलॊ छै आरू जे भटकै वाला छै सभ लॆ
बूतरू के मनॊ के डर ओकरा चलै घड़ी  चौकन्ना  सावधान रखै छै
विद्यार्थी केरॊ  फेल होय के डर ओकरा  अथक परिश्रम करै मॆं मदद करै छै
जीवन मॆं डर केरॊ मात्रा तनियो टा नै होना अहंकारी  बनाबै सकै छै - कंस, रावण
डर कॆ समझी कॆ स्वीकारी लेना डर सॆं मुक्त होय के द्वार फिट्टॊ करी देना हुऎ सकै छै


जबॆ जबॆ कोनॊ सीमाना लाँघलॊ जाय छै डर के जनम होय छै
डर जे नफरत घिन पैदा करै छै - खुद सॆं भी, दोसरौ सॆं भी 
तोॆय डर सॆं बचै के हर तरह के चेष्टा करै छहॊ - डर छै कि कमै के नाम नै लै छै
डर सॆं बचै के हर तरह के चेष्टा  तोरा आरू कमजोर बनाबै छौं
ऐतना कमजोर कि तोंय टूटॆ सकॆ आरू अपराध करना ही तोरॊ प्रवृति बनी जाय
ऐकरा सॆं बचॊ - गलती करनॆ छहॊ तॆ स्वीकारॊ - तोरॊ सब डर फुर्र होथौं
गलती कोय भी  करॆ सकै छै - स्वीकारॊ आरू आगू बढ़ॊ - डरमुक्त जिनगी लॆ


डर  प्रेम केरॊ ही दोसरॊ रूप छेकै कुछ हद तलक
हर वू बात जे डर सॆं करैलॊ जाबॆ सकै छै प्रेम सॆं भी करैलॊ जाबॆ पारॆ
ऐगॊ बूतरू माय सॆं चिपकी जाय छै - या तॆं डर सॆं या प्रेम सॆं
ऐगॊ अपराधी अपराध करना छोड़ी दै छै - या तॆं डर सॆं या प्रेम सॆं
ऐगॊ जानवर  इंसान के बस मॆं होय  जाय छै - या तॆं डर सॆं या प्रेम सॆं
पर प्रेम जहाँ मुरझैलॊ जीवन मॆं  भी प्राण फूँकॆ सकॆ छै 
डर वहीं हलहलैलॊ जीवन कॆ भी हर पल मरघट पहुँचाबै मॆं भिड़लॊ रहै छै.

Angika Poetry : Dar
Poetry from Angika Poetry Book Collection : Sarang
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Wednesday, June 10, 2015

छमा

छमा

--- कुंदन अमिताभ ---

छमा करना कोनॊ अपराध नै छेकै
छमा करना निंदनीय  कृत्य नै छेकै
छमा करना  पथभ्रष्टक नै छेकै
छमा करना कोनॊ  साधारण बात नै छेकै
नै छमा करना हुऎ सकॆ छै.

छमा करला सॆं केकरॊ उद्धार होय छै
छमा करला सॆं कोय  परिष्कृत होय छै
छमा करला सॆं प्रदूषित वातावरण सॆं मुक्ति मिलै छै
छमा करला सॆं  नव जीवन के संचार होय छै
नै छमा करला सॆं  पास रहै छै घृणा.
छमा करना कोनॊ  साधारण बात नै छेकै
नै छमा करना हुऎ सकॆ छै.

Angika Poetry : Chhama
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Tuesday, June 9, 2015

बढ़ी चललै बिहार


बढ़ी चललै बिहार 

--- कुंदन अमिताभ ---

बढ़ी चललै बिहार चली चललै बिहार

चलतॆं रही कॆ अबॆ रू आगू बढ़ाना छै.

बढ़ी चललै बिहार एगॊ प्रगतिशील विचार
जेकरॊ माध्यम सॆं होतै  विकासॊ के दृष्टिपत्र तैयार
जे बनतै  लोगॊ कॆ  विकास योजना सॆं जोड़ै के आधार
बढ़ी चललै बिहार चली चललै बिहार
चलतॆं रही कॆ अबॆ आरू आगू बढ़ाना छै.

छेकै समावेशी विकास तरफ लॆ जाय के पहल
समाजॊ के हर तबका के राय होतै शुमार
निश्चित करलॊ जैतै सबके हक अधिकार
बढ़ी चललै बिहार चली चललै बिहार
चलतॆं रही कॆ अबॆ  आरू आगू बढ़ाना छै.

बिहारी उपहास के अवधारणा  भेलै  अबॆ बितलॊ बात
कानून राज  बहाल,आधारभूत संरचना  विकास के मिललै  सौगात
बिहार केरॊ प्रगति प्रारंभ भेलै प्रगति नॆ पकड़लकै रफ्तार
बढ़ी चललै बिहार चली चललै बिहार
चलतॆं रही कॆ अबॆ आरू आगू बढ़ाना छै.

महिला सशक्तीकरण कॆ नयॊ पैखना जे हिन्नॆ  जुड़ी गेलै
साइकिल योजना सॆं सामाजिक सोच  तलक बदली गेलै
अबॆ  अचरज कहाँ बच्ची सब झुंडॊ मॆं  जबॆ साइकिल  पॆ सवार
बढ़ी चललै बिहार चली चललै बिहार
चलतॆं रही कॆ अबॆ  आरू आगू बढ़ाना छै.

बिहार के विकास केरॊ निर्विवाद विजन डाक्यूमेंट  जों बनी जैतै
नया पीढ़ी के भावना कॆ नया विकास केरॊ आईना बनैलॊ जों जैतै
भ्रष्टाचार मिटाय कॆ,कार्यक्रम कॆ ठीक सॆं चलैलॊ जों जैतै तॆ रहतै  नतीजा शानदार
बढ़ी चललै बिहार चली चललै बिहार
चलतॆं रही कॆ अबॆ आरू आगू बढ़ाना छै.

जे कुछ भी होतै सब के सहयोगॊ सॆं  जों होतै
नीति निर्माण मॆं सब लोगॊ सॆं मशविरा जों  करलॊ जैतै
सबसॆं निचला तबका भी जेकरा सॆं हुऎ सकतै भागीदार
बढ़ी चललै बिहार चली चललै बिहार
चलतॆं रही कॆ अबॆ  आरू आगू बढ़ाना छै.

बढ़ी चललै बिहार छेकै बिहार सरकारॊ के ऐन्हॊ अभियान 
विशेषज्ञॊ, बुद्धिजीवियॊ,शिक्षाविदॊ, समाजॊ के सब वर्ग सॆं लॆ कॆज्ञान
चालीस हजार गाँव तलक पहुँची करतै परित्राण लानतै नया बिहान
बढ़ी चललै बिहार चली चललै बिहार
चलतॆं रही कॆ अबॆ आरू आगू बढ़ाना छै.

बढ़ी चललै बिहार चली चललै बिहार
चलतॆं रही कॆ अबॆ  आरू आगू बढ़ाना छै.

Angika Poetry : Badhi Challai Bihar 
Poet : Kundan Amitabh
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Monday, June 8, 2015

ठनका

ठनका

--- कुंदन अमिताभ ---

बिजली कौंधी कॆ घटा चौंधी  कॆ ठनका रौंधी कॆ
दिन मॆ भी घुप्प अन्हार रात लानी देनॆ छौं
हम्मॆं एगॊ बच्ची लड़की नैनॊ मॆं अश्रुधारा
बूढ़ॊ साँय सथॆं  जिनगी  बिताबै लॆ चली पड़लॊ छौं

झरिया के हर एक बून जहरीलॊ तीर बनी कॆ
सोझे सीना कॆ भेदी सौसे शरीर जराबै मॆं लगी गेलॊ छौं
हम्मॆं एगॊ बच्ची लड़की नैनॊ मॆं अश्रुधारा
बूढ़ॊ साँय सथॆं  जिनगी  बिताबै लॆ चली पड़लॊ छौं

अंधर - तूफान  लॆ चललै करगी पार उफनलॊ नद्दी  कॆ
प्रहार होलै आरू  बरियॊ  पता नै कोन नरक दन्नॆ बढ़ी रहलॊ छौं
हम्मॆं एगॊ बच्ची लड़की नैनॊ मॆं अश्रुधारा
बूढ़ॊ साँय सथॆं  जिनगी  बिताबै लॆ चली पड़लॊ छौं


मय्यॊ - बाबू के कपार खराब रहै जे  बेदिशा मिललै भाग्यॊ कॆ
ससुराल लायक नै होयकॆ भी माय - बाबू सॆं दूर होय रहलॊ छौं
हम्मॆं एगॊ बच्ची लड़की नैनॊ मॆं अश्रुधारा
बूढ़ॊ साँय सथॆं  जिनगी  बिताबै लॆ चली पड़लॊ छौं

सौतेली बेटी कॆ भी ऐन्हॊ सजा नै मिलॆ तोंय देल्है जे आपनॊ बेटी कॆ
अनजान पापॊ  के सजा भुगतै लॆ  कालकोठरी दन्नॆ बढ़ी रहलॊ छौं
हम्मॆं एगॊ बच्ची लड़की नैनॊ मॆं अश्रुधारा
बूढ़ॊ साँय सथॆं  जिनगी  बिताबै लॆ चली पड़लॊ छौं

माय गे हम्मॆ तोरॊ प्यार मॆं पागल छेलियॊ सोचै रहियॊ सब अच्छे करभैं 
सब सखी के मनॊ के जोड़ीदार बाँकी हमरे नै  बंद सुरंग दन्नॆ बढ़ी रहलॊ छौं
हम्मॆं एगॊ बच्ची लड़की नैनॊ मॆं अश्रुधारा
बूढ़ॊ साँय सथॆं  जिनगी  बिताबै लॆ चली पड़लॊ छौं




Angika Poetry : Thanka
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Sunday, June 7, 2015

बनभुटका

बनभुटका

--- कुंदन अमिताभ ---

मामा केरॊ पुष्टा
 पॆ लागलॊ झारी मॆं लूधलॊ
बनभुटका के तोड़ी लै छै  रोजे के रोज ?
झारी मॆं बनभुटका  ऐलॊ छै बड़ी जोर
कोनॊ करिया भुजंग  तॆ कोनॊ लाल टेस
कोनॊ पीरॊ-पीरॊ तॆ कोनॊ रेघा वाला हरिहर

मामा केरॊ पुष्टा पॆ लागलॊ झारी मॆं लूधलॊ
बनभुटका के तोड़ी लै छै  रोजे के रोज ?
परबैतनी सॆं पूछैं के तोड़ी लै छै ?
फैरछॊ होथैं ओहॆ सब जाय छै  गांग नहाय लॆ
नुंगा - फट्टा  लॆ कॆ  कंतरी थामनॆ- ओकरे काम छेकॊ

मामा केरॊ पुष्टा पॆ लागलॊ झारी मॆं लूधलॊ
बनभुटका के तोड़ी लै छै  रोजे के रोज ?
चटिया सीनी सॆं पूछैं के तोड़ी लै छै ?
बेरा लबला के पहिनॆ ओहॆ सब जाय  छै
स्कूली दन्नॆ  बस्ता लॆ कॆ पढ़ै लॆ - ओकरे काम छेकॊ

मामा केरॊ पुष्टा पॆ लागलॊ झारी मॆं लूधलॊ
बनभुटका के तोड़ी लै छै  रोजे के रोज ?
सगतोरनी सॆं पूछैं के तोड़ी लै छै ?
जलखय  बाद ओहॆ सब गुजरै  छै  पुष्टा दॆ कॆ  बैहारी दन्नॆ
साग तोरै लॆ खौचा - खौचा  - ओकरे काम छेकॊ

मामा केरॊ पुष्टा पॆ लागलॊ झारी मॆं लूधलॊ
बनभुटका के तोड़ी लै छै  रोजे के रोज ?
घसघरनी सॆं पूछैं के तोड़ी लै छै ?
रौद - बतास मॆं ओहॆ सब बअुऐतॆं रहै छै 
घास गढै लॆ खुरपी लॆ कॆ - ओकरे काम छेकॊ

मामा केरॊ पुष्टा पॆ लागलॊ झारी मॆं लूधलॊ
बनभुटका के तोड़ी लै छै  रोजे के रोज ?
धोरैबा सॆं पूछैं के तोड़ी लै छै ?
बेरा डुबला के  बाद ओहॆ सब लौटै छै बैहारी सॆं
माल-जाल लॆ कॆ - ओकरे काम छेकॊ

मामा केरॊ पुष्टा पॆ लागलॊ झारी मॆं लूधलॊ
बनभुटका के तोड़ी लै छै  रोजे के रोज ?
कोय तोरॆ कोय खाय  तोरॊ की जाय छौं
खाय वाला चीज छेकै खैबे करतै कनियान
परेशान नै हेयियॊ - जेकरा भाग्य मॆ जे छै - मिलबे करतै.

Angika Poetry : Banbhutka
Poetry from Angika Poetry Book Collection : Sarang
Poet : Kundan Amitabh
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Saturday, June 6, 2015

धरती केरॊ झपकी

धरती केरॊ झपकी

--- कुंदन अमिताभ ---

धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ

ऐकरॊ पहिनै कि तोंय बिलाय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय हेराय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय गराय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय सेराय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय छलाय जाहॊ
ऐकरॊ पहिनै कि तोंय गलाय जाहॊ
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ.

ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ वजूद खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ लहू खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ जुबान खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ धरान खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ सूरूर खतम हुऎ
ऐकरॊ पहिनै कि तोरॊ हूर खतम हुऎ
धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ.

धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ
धरती केरॊ झपकी सॆं 
भारी-भरकम डायनासोर भी लुप्त होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं 
उच्चॊ-उच्चॊ पहाड़ भी विलुप्त होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं 
सुसुप्त ज्वालामुखी भी जाग्रत होय जाय छै

धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ
धरती केरॊ झपकी सॆं 
शांत नद्दी केरॊ  जल भी अशिष्ट होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं 
विशेष ज्ञान भी अश्लिष्ट होय जाय छै
धरती केरॊ झपकी सॆं 
अप्रतिम सौंदर्य भी अविस्पष्ट होय जाय छै

धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ
धरती कॆ नोचै के जिद नै करॊ
धरती कॆ बेचै के जिद नै करॊ
धरती कॆ सैतै के जिद नै करॊ
धरती कॆ न्योतै के जिद नै करॊ
धरती कॆ भेदै के जिद नै करॊ
धरती कॆ औलाबे के जिद नै करॊ

धरती केरॊ झपकी सॆं बचॊ

Angika Poetry : Dharti Ke Jhapki
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Friday, June 5, 2015

अन्याय असहज

--- कुंदन अमिताभ ---

अन्याय करना जों पाप छेकै
त॑ अन्याय सहना भी कम बड़ऽ पाप नै 
अन्याय  असहज कृति छेकै आरू
अन्याय  सहना आसान भी नै छै ।

अन्याय  सहना आसान भी नै छै
प्रभावित  चुप्प रहै छै ओकरा
अन्यायी के हरकत प॑ तरस आबै छै
अन्यायी के साथ ओकरऽ अपनत्व के संबंध रहै
लेकिन स्वार्थ  लोभ आरू बहकावा मं॑ 
अन्यायी आय जानी दुश्मन बनी गेलऽ छै
प्रभावित सोचतं॑ रहै छै शायद सद् बुद्धि आब॑
आरू  अन्यायी  सुधरी जाय 
सही रास्ता पकड़ी लिअ॑
अन्यायी छेकै कि  चुप्पी देखी सोचतं॑ रहै छै कि
सामने वाला त॑ डरपोक छै 
कत्त॑ असहाय आरू बेचारा छै ।

अन्याय  सहना आसान भी नै छै
प्रभावित केरऽ चुप्पी देखी  क॑
अन्यायी के मऽन  खूब बढ़लऽ जाय छै
नया नया तिकड़म करै म॑ भीड़ी जाय छै
एक के बाद दोसरऽ अपराध
एक झूठ के बाद दोसरऽ झूठ
एक क॑ छुपाबै ल॑ दोसरऽ अपराध
एक क॑ छुपाबै ल॑  दोसरऽ झूठ
आस्तं॑ - आस्तं॑ अपराध करना 
ओकरऽ आदत होय जाय छै
हर  बार जब॑ अपराध  करै छै
औचित्य आरू बहाना सं॑ सही ठहरैतैं रहै छै ।

अन्याय  सहना आसान भी नै छै
त॑ कि  अन्यायी केरऽ अन्याय सहतं॑ रहलऽ जाय ?
अन्याय - अन्यायी  सं॑  जंग जरूरी छै
जेकरा सं॑ अन्याय के अंत हुअ॑ सक॑
आरू अन्यायी व प्रभावित सहज स्वरूपऽ मं॑ आपनऽ 
जिंदगी जिअ॑ सक॑ ई धरती केरऽ 
एगो नम्रदिल इंसान  एन्हऽ
अन्याय आरू अन्यायी  प॑ विजय पाना छै
त॑ जंग जरूरी छै मानवता केरऽ हित मं॑
पर ई जंग  तोरऽ अंदर नै  बाहर होना चाहियऽ
बाहर  निष्क्रिय आरू अंदर जंग सं॑ कोय नतीजा नै
अन्याय आरू अन्यायी  उत्पात मचैतं॑ रहतै ।

अन्याय  सहना आसान भी नै छै
ई लेली आबऽ अन्याय आरू अन्यायी  के खात्मा लेली
न्याय के रक्षा लेली
मन सं॑ शांत रही क॑ अन्याय  के ऊपर प्रहार करलऽ जाय
जेकरा सं॑ अन्याय आरू अन्यायी  सं॑ निजात मिल॑ सक॑ 
कैन्हं॑ कि
अन्याय करना जों पाप छेकै
त॑ अन्याय सहना भी कम बड़ऽ पाप नै
अन्याय  असहज कृति छेकै आरू
अन्याय  सहना आसान भी नै छै ।

Angika Poetry : Anyaya Asahaj
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Thursday, June 4, 2015

विकास धरपट

विकास धरपट

--- कुंदन अमिताभ ---

विकास तॆ खूब होलॊ छै हिन्नॆ !
हिन्नॆ कुछ सालॊ मॆं विकास धरपट होलॊ छै !

बेरोजगारी कमलॊ छै - पलायन बढ़लॊ छै
जनसंख्या कमलॊ छै - लङका-बच्चा बढ़लॊ छै
दूरी घटलॊ छै - परिवहन के साधन बढ़लॊ छै
विकास तॆ खूब होलॊ छै हिन्नॆ !
हिन्नॆ कुछ सालॊ मॆं विकास धरपट होलॊ छै !

अफसर बढ़लॊ छै - किसान घटलॊ छै
राज्य बढ़लॊ छै   - भाषा घटलॊ छै 
मोबाईल बढ़लॊ छै - संवाद घटलॊ छै
विकास तॆ खूब होलॊ छै हिन्नॆ !
हिन्नॆ कुछ सालॊ मॆं विकास धरपट होलॊ छै !

कच्चा घॊर बढ़लॊ छै - पक्का मंदिर बढ़लॊ छै
तीर्थ यात्री बढ़लॊ छै - तीर्थ यात्रा घटलॊ छै
काँवरिया बढ़लॊ छै - श्रद्धालु घटलॊ छै
विकास तॆ खूब होलॊ छै हिन्नॆ !
हिन्नॆ कुछ सालॊ मॆं विकास धरपट होलॊ छै !


कनेक्टिविटी  बढ़लॊ छै - गाँव गाँव कटलॊ छै
कानून घटलॊ छै - भ्रष्टाचार  बढ़लॊ छै
अंधविश्वास  घटलॊ छै - अंधमानसिकता बढ़लॊ छै 
विकास तॆ खूब होलॊ छै हिन्नॆ !
हिन्नॆ कुछ सालॊ मॆं विकास धरपट होलॊ छै !

विरोधी स्वर घटलॊ छै -  तानाशाही प्रवृति बढ़लॊ छै 
धार्मिकता  बढ़लॊ छै - धार्मिक प्रहार  बढ़लॊ छै 
देशभक्त बढ़लॊ छै - देशभक्ति घटलॊ छै
विकास तॆ खूब होलॊ छै हिन्नॆ !
हिन्नॆ कुछ सालॊ मॆं विकास धरपट होलॊ छै !

Angika Poetry : Vikash Dharpat
Poetry from Angika Poetry Book Collection : Sarang
Poet : Kundan Amitabh
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Wednesday, June 3, 2015

टिकोला चुनतॆं बूतरू

टिकोला चुनतॆं बूतरू

--- कुंदन अमिताभ ---

उमसलॊ दुपहरी मॆं घामॊ सॆं नहैलॊ
गाछी के छाहुरी मॆं घिरनी नचैतॆं
टिकोला चुनतॆं बूतरू

गाछी मॆ ढेला, पैनॊ के झाँटॊ, बाँसॊ के फाँस
लगाय कॆ टिकोला गिराय के 
टिकोला चुनतॆं बूतरू

टकटकी लगाय कॆ फुनगी दन्नॆ
लदलॊ टिकोला गिराय के
टिकोला चुनतॆं बूतरू

पत्ता - पत्ता  सॆं बतियैतॆं पत्ता पीछू
 नुकैलॊ  टिकोला गिराय के
टिकोला चुनतॆं बूतरू

करकरिया रौदा मॆं बरदा कॆ चरैतॆं
लू केरॊ तपिश पर लाबा ऐन्हॊ फूटतॆं
टिकोला चुनतॆं बूतरू

मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारा
आपनॊ खिलखिलाहट मॆं समेटनॆ
टिकोला चुनतॆं बूतरू

Angika Poetry : Tikola Chuntein Bootroo
Poetry from Angika Poetry Book Collection : Sarang
Poet : Kundan Amitabh
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Tuesday, June 2, 2015

महज्जर

महज्जर

—– कुंदन अमिताभ —–

महज्जर छेकै भाय लोगॊ कॆ समझाना - महज्जर
तनी - तनी बातॊ पर फिकिर
आजकॊ फिकिर  कल का लेली
फेरू काल की करभॊ  ?
कालकॊ फिकिर काल करॊ  नॆ आय  कैन्हॆ करै छौ  ?
आजकॊ फिकिर कल कॆं तॆ नाशबॆ करथौं
आजकॆ भी चौपट करी देथॊं .

महज्जर छेकै भाय लोगॊ कॆ समझाना - महज्जर
फिकिर  मतलब  सुरूज  डूबै के कगार पर छै
छोटॊ - मोटॊ समस्या भी साँझकॊ परछाँय ऐन्हॊ बड़ॊ लौकै छै
महज्जर  तोरा सॆं दूर होय लॆ चाहै छै
लेकिन तोंय छौ कि पकड़ी कॆ राखै लॆ चाहै छहॊ
दमाही के मीहॊ जैसनॊ.
आरू बरदा के खूड़ॊ तलॆ पिसलॊ जाय छहॊ.

महज्जर छेकै भाय लोगॊ कॆ समझाना - महज्जर
एक - एक पल काटना तोरा महज्जर  लागै छहौं जिनगी के सफर मॆं
कैन्हॆं कि परिस्थिति कॆंं तोॆय आपनॊ अनुरूप ढालै लॆ चाहै छौ
जबकि तोरा ढलना छै परिस्थिति के अनुरूप 
परिस्थिति सॆं लड़तॆं - लड़तॆ लहूलूहान नै हुऒ
शुकून केरॊ छपरी मॆ शरण लॆ लॆ ऐन्हॊ मॆं
अखनकॊ क्षणॊ मॆं जियै के महत्ता जानै लॆ.

महज्जर छेकै भाय लोगॊ कॆ समझाना - महज्जर

Angika Poetry : Mahajjar
Poetry from Angika Poetry Book Collection : Sarang
Poet : Kundan Amitabh
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Monday, June 1, 2015

कैन्हॆं कि

कैन्हॆं कि

—– कुंदन अमिताभ —–

कैन्हॆं कि जुबान छै हमरॊ बेजुबान
या कि जुबान होथौं छियै हम्मॆं बेजुबान
एकरॊ की मतलब - हमरा चुप्पे रहना छै ?
कहना छै हमरौ बहुत कुछ कहना छै.

कैन्हॆं कि जुबान छै हमरॊ बेजुबान
या कि जुबान होथौं छियै हम्मॆं बेजुबान
एकरॊ की मतलब - की हम्मॆं केखरौ सॆं डरै छियै?
सोचै छियै तोंय भगवान सॆं तॆ डरॊ कम सॆं कम.

कैन्हॆं कि जुबान छै हमरॊ बेजुबान
या कि जुबान होथौं छियै हम्मॆं बेजुबान
एकरॊ की मतलब - हमरा कोनॊ तकलीफ नै?
तकलीफ रहथौं खुश रहै के इलम सीखै छियै.

कैन्हॆं कि जुबान छै हमरॊ बेजुबान
या कि जुबान होथौं छियै हम्मॆं बेजुबान
एकरॊ की मतलब - हमरा मॆ कोय भावना नै?
भावना जाहिर करै लॆ शब्द कम पड़ी जाय छै.

कैन्हॆं कि जुबान छै हमरॊ बेजुबान
या कि जुबान होथौं छियै हम्मॆं बेजुबान
एकरॊ की मतलब - हँसला सॆं होय जाय छियै बेहाया?
हँसी - हँसी कॆ जिनगी के गंभीरता महसूस करै छियै.

कैन्हॆं कि जुबान छै हमरॊ बेजुबान
या कि जुबान होथौं छियै हम्मॆं बेजुबान
एकरॊ की मतलब - तोरॊ हर उत्पात माफ करी देभौं?
उत्पात सॆं निजात लॆ तोरॊ न्यायी बनै के इंतजार करै छियै.

कैन्हॆं कि जुबान छै हमरॊ बेजुबान
या कि जुबान होथौं छियै हम्मॆं बेजुबान
एकरॊ की मतलब - हमरा बारे मॆं गलतफहमी फैलैतॆं रहभॊ जनमानस मॆं ?
तोरॊ स्वार्थ कॆ निःस्वार्थ भावना मॆं बदलै के इंतजार करै छियै.

कैन्हॆं कि जुबान छै हमरॊ बेजुबान
या कि जुबान होथौं छियै हम्मॆं बेजुबान
एकरॊ की मतलब - मोबाईल पर रोज बात नै करला पर होलियै परायॊ ?
मोबाईल पर रोजे बात करना ही फिक्रमंद के निशानी नै छेकै समझाबै के चेष्टा करै छियै.

Angika Poetry : Kanhe ki
Poetry from Angika Poetry Book Collection : Sarang
Poet : Kundan Amitabh
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कलॆ – कलॆ ऐन्हॊ तॆ

कलॆ – कलॆ ऐन्हॊ तॆ
—– कुंदन अमिताभ —–
कलॆ – कलॆ ऐन्हॊ तॆ करले जाबॆ पारॆ छै.
कलॆ – कलॆ ऐन्हॊ तॆ करले जाबॆ पारॆ छै कि
कोय भी काम करलॊ जाय तॆ एकदम ईमानदारी सॆं
उत्कृष्ट गुणवत्ता सॆं उत्कृष्टता पाबै लॆ
बार-बार अफसोस करी-करी कॆ खराब करलॊ काम कॆ ठीक
करै मॆं उर्जा व्यय करला के बजाय
उत्कृष्ट गुणवत्ता सॆं काम मॆ उत्कृष्टता पाबै लेली
काम करना जादे आसान छै.
कलॆ – कलॆ ऐन्हॊ तॆ करले जाबॆ पारॆ छै कि
जिनगी कॆ धुआँ बनाबै वाला इ सिगरेट, प्रदूषण
कॆ त्यागी कॆ एगॊ आनन्द सॆं भरलॊ जिनगी जीलॊ जाय
सोचॊ सिगरेट तोंय पीबी रहलॊ छौ
कि सिगरेट तोरा पीबी रहलॊ छौं
प्रदूषण सॆं वातावरण कॆ तोंय उड़ाय रहलॊ छौ
कि प्रदूषण तोरा उड़ाबै मॆं लागलॊ छौं
सिगरेटमुक्त, प्रदूषणमुक्त वातावरण के साथ
जिनगी के मौज मनाना जादे आसान छै.
कलॆ – कलॆ ऐन्हॊ तॆ करले जाबॆ पारॆ छै कि
जिनगी जीऎ के कोनॊ उद्देश्य खोजी लेलॊ जाय
जिनगी के सफर लेली कोनॊ दिशा पकड़ी लेलॊ जाय
सावधान होयजा जों कोय तोरा तोरॊ जिनगी कॆ
नियंत्रित करै के प्रयास करी रहलॊ छौं
तोरा तोरहै सॆं अलग करै मॆं भीरी गेलॊ छौं
बोलै छौं हमरा सॆं संबंध राखॊ ऐकरा सॆं नै ओकरा सॆं नै
मॊन के सुनॊ, केकरॊ बहकाबॊ मॆ नै आबॊ
उद्देश्य आरू दिशा के साथ जिनगी जीना जादे आसान छै.
कलॆ – कलॆ ऐन्हॊ तॆ करले जाबॆ पारॆ छै कि
खुद कॆ धोखा मॆं नै राखलॊ जाय
खुद कॆ धोखा मॆं रखला सॆं दोसरॊ धोखा खैतै ऐन्हॊ नै छै
धोखा खैबॊ तोंय जंजाल मॆं फँसभॊ तोंय
जिनगी कॆ नाटक कहलॊ जाबॆ पारॆ
पर नाटक करला सॆं जिनगी के वैतरणी नै पार लागै छै
हर मोड़ पर नाटक आरू हर मोड़ पर बहाना नै
ईमानदार आरू सच्चा होय कॆ
जिनगी कॆ गल्लॊ लगना जादॆ आसान छै.
कलॆ – कलॆ ऐन्हॊ तॆ करले जाबॆ पारॆ छै कि
अज्ञानी रही कॆ ज्ञानी नै बनलॊ जाय
पूछै मॆं लाज लगै छौं तॆ ज्ञानी नै बनॆ पारभॊ
पूछै मॆं लाज लगना अज्ञानता के लक्षण छेकै
पूछॊ कि अज्ञान दूर हुऎ सकॆ
पूछॊ कि ज्ञान मिलॆ सकॆ
अज्ञानता सॆं जी हदियैथौं
पुछला सॆं त्राण मिलथौं
अज्ञानता मॆं रहला सॆं पूछी-पूछी कॆ ज्ञान पाना जादॆ आसान छै.
कलॆ – कलॆ ऐन्हॊ तॆ करले जाबॆ पारॆ छै कि
अन्याय सहै के आदत खतम करलॊ जाय
अन्याय सहना आरू चुप्पी साधी लेना जानवर के आदत छेकै
बोलॊ आवाज उठाबॊ नै तॆ अन्याय बढ़लॆ जैथौं
बोलभॊ तॆ अन्यायी बोलथौं चिकरै छै
चिकरी कॆ मरी जाना ठीक छै मगर चुप्पी साधी कॆ नै
चिकरॊ एतना कि अन्यायी के मानवता जागी जाय
चिकरॊ एतना कि अन्याय थमी जाय
सहै सॆं बोलना चिकरना जादॆ आसान छै.
कलॆ – कलॆ ऐन्हॊ तॆ करले जाबॆ पारॆ छै.

Angika Poetry : Kale Kale Aenhow ta
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