-- कुंदन अमिताभ --
भीत भरभराय करी ढही गेलऽ होतै
जीत के मनसुआ स॑ भिरी गेलऽ होतै।
बदलाव केरऽ अंधर केरऽ बवंडर म॑
सात समुंदर भी हिली गेलऽ होतै ।
हाल मौसम केरऽ त॑ बदलतै जरूर
रूख हवा के जों बदली गेलऽ होतै ।
ठोठऽ चपला स॑ दम घुटला प॑ भी
स्वर-नाद बनी गूँजी उठलऽ होतै ।
फेंकला स॑ भाँसऽ केरऽ ढेर पर भी
शान गोदी के कहीं बनी गेलऽ होतै
बात ऐन्हे छै "कुंदन" तकदीर केरऽ
आपनऽ पराया भी बनी गेलऽ होतै ।
Angika Poetry : Bheet
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Poet : Kundan Amitabh
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