Sunday, April 9, 2017

भीत


-- कुंदन अमिताभ -- 
भीत भरभराय करी ढही गेलऽ होतै
जीत के मनसुआ स॑ भिरी गेलऽ होतै।

बदलाव केरऽ अंधर केरऽ बवंडर म॑
सात समुंदर भी हिली गेलऽ होतै ।

हाल मौसम केरऽ त॑ बदलतै जरूर
 रूख हवा के जों बदली गेलऽ होतै ।

ठोठऽ चपला स॑ दम घुटला प॑ भी
स्वर-नाद बनी गूँजी उठलऽ होतै ।

फेंकला स॑ भाँसऽ केरऽ ढेर पर भी
शान गोदी के कहीं बनी गेलऽ होतै

बात ऐन्हे छै "कुंदन" तकदीर केरऽ
आपनऽ पराया भी बनी गेलऽ होतै ।

Angika Poetry : Bheet
 Poetry from Angika Poetry Book :
 Poet : Kundan Amitabh
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