सरंग सॆं उच्चॊ
--- कुंदन अमिताभ ---
कोय ठिक्के कहनॆ छै -
धरती सॆं भी भारी होय छै माय
धरती तॆं गुस्साय भी जाय छै
पर हर हाल मॆं संतान के भल्लॊ
सोचै छै - माय
कोय ठिक्के कहनॆ छै -
सरंग सॆं भी उँच्चॊ होय छै - बाबू
बाबू नै रहला पर लागै छै सरंग उठी गेलै
मुसीबत वक्तीं भी हर हाल मॆं छत्रछाया
बनैलॆं राखै छै - बाबू
कोय ठिक्के कहनॆ छै -
हवा सॆं भी चपल होय छै मॊन
हवा चलै के दिशा भी निश्चित होय छै
पर पल भर मॆं कोनॊ दिशा मॆं
दौड़ै पारै छै - मॊन
कोय ठिक्के कहनॆ छै -
धरती पर उगलॊ घास सॆं जादा होय छै हमरॊ चिन्ता
धरती पर उगलॊ घास छै तॆ अनगिनत - पर सीमित छै
पर अनगिनत आरू असीमित छै
हमरॊ मनॊ के चिन्ता
कोय ठिक्के कहनॆ छै -
माय - बाबू के सेवा केरॊ धर्म अपनाय कॆ
मन कॆ स्थिर करी कॆ चिंता भगाय कॆ
सहज ढंगॊ सॆं जीलॊ
जाबै पारै छै - जिनगी
Angika Poetry : Sarang Sein Uchchow
Poetry from Angika Poetry Book :
Poet : Kundan Amitabh
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कोय ठिक्के कहनॆ छै -
धरती सॆं भी भारी होय छै माय
धरती तॆं गुस्साय भी जाय छै
पर हर हाल मॆं संतान के भल्लॊ
सोचै छै - माय
कोय ठिक्के कहनॆ छै -
सरंग सॆं भी उँच्चॊ होय छै - बाबू
बाबू नै रहला पर लागै छै सरंग उठी गेलै
मुसीबत वक्तीं भी हर हाल मॆं छत्रछाया
बनैलॆं राखै छै - बाबू
कोय ठिक्के कहनॆ छै -
हवा सॆं भी चपल होय छै मॊन
हवा चलै के दिशा भी निश्चित होय छै
पर पल भर मॆं कोनॊ दिशा मॆं
दौड़ै पारै छै - मॊन
कोय ठिक्के कहनॆ छै -
धरती पर उगलॊ घास सॆं जादा होय छै हमरॊ चिन्ता
धरती पर उगलॊ घास छै तॆ अनगिनत - पर सीमित छै
पर अनगिनत आरू असीमित छै
हमरॊ मनॊ के चिन्ता
कोय ठिक्के कहनॆ छै -
माय - बाबू के सेवा केरॊ धर्म अपनाय कॆ
मन कॆ स्थिर करी कॆ चिंता भगाय कॆ
सहज ढंगॊ सॆं जीलॊ
जाबै पारै छै - जिनगी
Angika Poetry : Sarang Sein Uchchow
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