Wednesday, July 1, 2015

सरंग सॆं उच्चॊ


 सरंग सॆं उच्चॊ  

--- कुंदन अमिताभ ---

कोय ठिक्के कहनॆ छै - 
धरती सॆं  भी भारी होय छै माय
धरती तॆं  गुस्साय भी जाय छै
पर  हर  हाल मॆं संतान के भल्लॊ 
सोचै छै - माय

कोय ठिक्के कहनॆ छै - 
सरंग सॆं  भी उँच्चॊ होय छै - बाबू
बाबू नै रहला पर लागै छै सरंग उठी गेलै
मुसीबत वक्तीं भी  हर हाल मॆं छत्रछाया  
बनैलॆं राखै छै - बाबू

कोय ठिक्के कहनॆ छै - 
हवा सॆं भी चपल होय छै मॊन
हवा  चलै के दिशा भी निश्चित होय छै
पर पल भर मॆं कोनॊ दिशा मॆं 
दौड़ै पारै छै - मॊन

कोय ठिक्के कहनॆ छै - 
धरती पर उगलॊ घास सॆं जादा होय छै हमरॊ चिन्ता
धरती पर उगलॊ घास छै तॆ अनगिनत  - पर सीमित छै
पर  अनगिनत आरू  असीमित छै
हमरॊ मनॊ के चिन्ता

कोय ठिक्के कहनॆ छै - 
माय - बाबू के सेवा  केरॊ धर्म अपनाय कॆ
मन कॆ स्थिर करी कॆ चिंता भगाय कॆ
सहज ढंगॊ सॆं जीलॊ 
जाबै पारै छै - जिनगी

Angika Poetry : Sarang Sein Uchchow
Poetry from Angika Poetry Book : 
Poet : Kundan Amitabh
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